"आप का नाम क्या है ?" बगल में आई नयी पड़ोसन ने पूछा |
वो सोच में पड़ गयी , क्या बताये | शादी के बाद जब से इस घर में आई है तब से तो किसी ने उसके नाम से नहीं पुकारा | शुरू में बहू , फिर मुन्ने की माँ और अब मिसेस शर्मा , यही सुनती आई है वो | शायद तीस साल बहुत होते हैं किसी को खुद का वजूद भूलने के लिए | वो अपना वजूद ढूँढ रही थी , पड़ोसन चली गयी थी |
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मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
बहुत बहुत आभार आदरणीय वीर मेहता जी..
Sach ko chooti huyi saarthak katha.....Vaastav me andhikaash mahilaho ka naam unke vajood ki tarah rishato me kho jaata hai.
बहुत बहुत आभार आदरणीय जीतेन्द्र पस्तरीया जी..
बहुत सुंदर. एक महीन से पहलु पर, पूर्ण लघुकथा. बधाई आदरणीय विनय जी
आप बिलकुल सही कह रहे हैं , आज भी गांवों में ये होता है | शुक्रिया ..
हा.. हा... हा.. बस मजाक था विनय भाई , कोई सवाल नहीं था ,मुझे पता है आज भी गाँव मैं ऐसा ही होता है ! चलिए आनंद आ गया !;-)
आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी , बहुत बहुत आभार रचना पर दृस्टि डालने के लिए | दरअसल पहले पति भी पत्नियों को उनके बच्चे की माँ कहकर ही बुलाते थे |
आदरणीय विनय जी, सुन्दर रचना , एक सवाल मन में आ रहा है , उनके पति उन्हें किस नाम से बुलाते होंगे ...हा ..हा .हा .बस एक मजाक ....हार्दिक बधाई आपको !
बहुत बहुत आभार मिथिलेश वामनकर जी , आपके उत्साहजनक शब्द बहुत सम्बल देते हैं |
आदरणीय विनय जी बहुत ही बेहतरीन लघुकथा है. अपने शीर्षक से पूर्णतः न्याय करती सफल लघुकथा. बहुत बहुत बधाई.
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