"यार,काव्य-गोष्ठी तो बहुत कर लीं पर काव्य-सम्मेलनों से बुलावा नहीं आता |"
"अरे मिट्टी के माध, अच्छी कविता लिखना–पढ़ना ही काफ़ी नहीं|"
"तो !"
"तोता बनना सीखो |"
"कैसे?"
"सज्जन के घर राम-राम |और चोर के घर-माल-माल |और फिर पाँचों अंगुलियाँ घी में | "
.
सोमेश कुमार (मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
सौरभ सर और गणेश सर रचनाओं पर आपका आना ही रचना को सफल बना देता है|शायद आपने कथा के पीछे मेरी मनोभावना को पहचान लिया |शायद इसे ही विशेषज्ञता या अंतर-दृष्टी कहते हैं|वन्दना जी ,गिरिराज सर एवं कांता दीदी आपके स्नेह के लिए भी आभार
बहुत खूब आदरणीय वाह
अबकी धोया है प्योर 'निरमा' वाशिंग पाउडर के साथ, बहुत खूब बंधू, बधाई प्रेषित है स्वीकार करें.
हा हा हा हा............ सोमेश भाई ज़िन्दाबाद !
संक्षिप्त, सटीक, स्पष्ट ! ..
बधाइयाँ-बधाइयाँ !!
आदरणीय सोमेश भाई , आज कल की सफलता की कूंजी यही तो है ! बढिया कटाक्ष ! बधाइयाँ ।
शुक्रिया आप सभी के शब्द नई उर्जा प्रदान करते हैं पर इस उर्जा को सही दिशा देने वाले शब्दों की अभी भी प्रतीक्षा है
इशारों इशारों में अच्छा कटाक्ष किया है आपने, अच्छी लघुकथा है
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