“हमारी मिट्टी और जड़ों को खोद-खोदकर ये चूहे हमारे हरे-भरे टापू को उजाड़ बना देंगे और फिर कहीं और बढ़ जाएँगे I“
एक हरे-भरे पेड़ ने चिंता व्यक्त की |
“सकरात्मक सोचों ! जहाज़ के डूबने से पहले इन्होनें बहुत-कुछ खाया-पचाया है, ये हमें पौष्टिक खाद देंगे |”
प्रसन्न मुद्रा में एक अन्य पौधा बोला |
जोर का आँधी-पानी आया | कई विशालकाय वृद्ध पेड़ों की जड़े बाहर आ गईं और कुछ वहीं गिर पड़े |कुछ समय पश्चात वहाँ नई प्रजति के बीज जमने लगे, टापू पर नया बसंत आ चुका था |
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सोमेश कुमार (मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
सुंदर लघुकथा के लिए बधाई आपको
बहुत बेहतर लघुकथा, आदरणीय सोमेश भाई जी. हार्दिक बधाई
आदरणीय सोमेश भाई , रचना बढ़िया लगी , हार्दिक बधाइयाँ ।
आदरणीय सोमेश जी अच्छी रचना है |हार्दिक अभिनन्दन |सादर
बहुत बढ़िया आदरणीय प्रतीकों का खूबसूरत प्रयोग
आदरणीय सोमेश भाई जी सुन्दर और सफल लघुकथा. हार्दिक बधाई
आदरणीय सोमेश भाई , सुन्दर लघुकथा .."टापू पर नया बसंत आ चुका था"......जीवन का सत्य , पुरानी पीढ़ी चली जाती है ....नयी आ जाती है ..... बधाई आपको !
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