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एक तरही ग़ज़ल: ज़िन्दगी ने पलट के पूछा है/कृष्णसिंह पेला

वक़्त ऐसे मुक़ाम पर लाया
आज हम से बिछड गया साया

चंद हालात ने जो समझाया
उस को अपनी जगह सही पाया

झूठ से जा मिली जुबाँ उसकी
आज पहली दफ़ा वो हकलाया

हमसफ़र की तलाश है सब को
और पा कर भी कोई पछताया

प्यार के नाम पर वहम केवल
उस के सारे वजूद पर छाया

तुम भी लगते बहुत परेशाँ हो
हम को भी ये जहाँ नहीं भाया

किन ख़यालों में फूल था गुमशुम
मैंने हौले छुआ तो इतराया

मुस्कुराहट में आब बाक़ी है
गाँव से वो नया नया आया ।

आदमीयत के इस परिंदे को
आदमी ने ही नोचकर खाया

ज़िन्दगी ने पलट के पूछा है
तू किसी की जफ़ा से मुरझाया ?

पाँव फैला रहा था साया तो
धूप को देखते ही शरमाया

चल, मगर रौंदते हुए मत चल
रास्ता आज मुझ पे झल्लाया

देखो, उसने महज़ दिखाने को
घर जलाकर सिगार सुलगाया

ख़्वाब बुनता रहा सफ़र में वो
आज मंज़िल को देख घबराया

नींद अश्कों में बह गयी मेरी
'वक़्त ने ऐसा गीत क्यों गाया'

(मौलिक एवं अप्रकाशित)
यह मिसरा ए तरह जनाब जावेद अख़्तर की ग़ज़ल(तुम को देखा तो ये ख़याल आया...)से लिया गया है ।
बह्र : खफीफ मुसद्दस मख्बून मक्तूअ
फाइलातुन मुफाइलुन फेलुन

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Comment

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Comment by Hari Prakash Dubey on February 2, 2015 at 7:30pm

आदरणीय कृष्णसिंह पेला जी, संपूर्ण रचना सुन्दर है ,बहुत बहुत बधाई !

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 2, 2015 at 7:27pm
पूरी ग़ज़ल ही अच्छी है , पर ये " झूठ से जा मिली जुबाँ उसकी
आज पहली दफ़ा वो हकलाया ।
कुछ और भी कहती है। बधाई आदरणीय कृष्ण सिंह जी,सादर।
Comment by gumnaam pithoragarhi on February 2, 2015 at 6:41pm

बहुत खूब ग़ज़ल हुई है भाई जी

Comment by Krishnasingh Pela on February 2, 2015 at 5:23pm
सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीय दिनेश कुमार जी !
Comment by दिनेश कुमार on February 2, 2015 at 5:08pm
BAHUT BAHUT UMDA...WAAH....HAR SHER BAHUT ACHHAA
Comment by Krishnasingh Pela on February 2, 2015 at 4:48pm
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय गणेश जी बाग़ी साहब कि ग़ज़ल ने आपका स्नेह प्राप्त किया ।

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 2, 2015 at 11:05am

तरह को बहुत ही खूबसूरती से निबाह गये आदरणीय कृष्णसिंह पेला जी, सभी अशआर अच्छे लगें. बहुत बहुत बधाई आदरणीय.

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