ऐ दिल ……
ऐ दिल तू क्यूँ व्यर्थ में परेशान होता है
हर किसी के आगे क्यूँ व्यर्थ में रोता है
कौन भला यहां तेरा दर्द समझ पायेगा
हर अरमान यहां अश्क के साथ सोता है
ऐ दिल तू क्यूँ व्यर्थ में परेशान होता है ……
ये सांझ नहीं अपितु सांझ का आभास है
पल पल क्षरण होते रिश्तों का आगाज़ है
भावों की कन्दराओं में बोलता सन्नाटा है
पाषाणों में कहाँ प्यार का सृजन होता है
ऐ दिल तू क्यूँ व्यर्थ में परेशान होता है ……
ऐ शलभ तू क्यूँ किसी लौ पे आसक्त होता है
क्यूँ अन्धकार में अपना अस्तित्व खोता है
ये दुनिया तो बस इक स्वार्थ की महफ़िल है
खुशी के आवरण में यहाँ तो साथ ग़म होता है
ऐ दिल ! तू क्यूँ व्यर्थ में परेशान होता है
हर किसी के आगे क्यूँ व्यर्थ में रोता है
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का तहे दिल शुक्रिया।
आदरणीय somesh kumar जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का तहे दिल शुक्रिया।
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का तहे दिल शुक्रिया।
आदरणीय Dr. Vijai Shanker जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का तहे दिल शुक्रिया।
आदरणीय Hari Prakash Dubey जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का तहे दिल शुक्रिया।
आदरणीय Er. Ganesh Jee "Bagi" जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का तहे दिल शुक्रिया।
आदरणीय सुशील भाई , बहुत सुन्दर समझाइश देती हुई आपकी रचना के लिये हार्दिक बधाइयाँ ।
ये सांझ नहीं अपितु सांझ का आभास है
पल पल क्षरण होते रिश्तों का आगाज़ है
भावों की कन्दराओं में बोलता सन्नाटा है
पाषाणों में कहाँ प्यार का सृजन होता है
ऐ दिल तू क्यूँ व्यर्थ में परेशान होता है
dil preshan na ho ,sunder bhav aadrniy
आदरणीय सुशील सरना जी, सुन्दर कविता के लिए बधाई, सादर
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