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( ग़ज़ल )- ज़रूरी है क्या ? चश्मे तर खोजिये ---- गिरिराज भंडारी

ज़रूरी है क्या ? चश्मे तर  खोजिये

********************************

 

122    122    122    12

जहाँ ग़म  न हो ऐसा घर  खोजिये

जो हँसता मिले , बामो दर खोजिये

 

कोई  बाइसे  ज़िंदगी  भी  तो  हो

इधर  खोजिये  या उधर   खोजिये

 

बाइसे  ज़िंदगी = ज़िन्दगी का कारण

 

गिरा एक क़तरा था सागर में कल

ज़रा जाइये   अब  असर  खोजिये

 

अँधेरा , यक़ीनों  से  हटता   नहीं

जलें आप खुद , तब सहर खोजिये

सहर = सवेरा

 

अगर  आपका शाना  सूखा है  तो

ज़रूरी है क्या ? चश्मे तर  खोजिये

 

शाना- कांधा , चश्मे तर = गीली आंखें

 

जहाँ से  अकेले ही  जाना है  जब

भला किस लिये हम सफ़र खोजिये

 

निडरता   हमेशा  सही  भी  नहीं

ख़ुदा का ज़रा दिल में डर  खोजिये

 

ख़ुदा का करम ही तो है सीमो ज़र

भला क्यूँ  कहीं अब गुहर खोजिये

 

सीमो ज़र=धन दौलत, गुहर = कीमती पत्थर

 

जमीं,  आसमाँ  से  बहुत  दूर  है

मुझे  नीचे  खोजें , अगर  खोजिये  

*******************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 7, 2015 at 9:37pm

आदरणीय गिरिराज सर, बेहतरीन ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दिल से दाद कुबूल फरमाए. ये अशआर कमाल के हुए है -

कोई  बाइसे  ज़िंदगी  भी  तो  हो

इधर  खोजिये  या उधर   खोजिये

अगर  आपका शाना  सूखा है  तो.....  शायद ऐसा कहने पर शेर मुझे अधिक अच्छा लग रहा है- अगर आपके शाने सूखे है तो,

ज़रूरी है क्या ? चश्मे तर  खोजिये.....


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 7, 2015 at 5:53pm

आदरणीय श्याम नारायण भाई , गज़ल की  सराहना के लिये  आपका दिली शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 7, 2015 at 5:51pm

आदरणीय जितेन्द्र भाई , गज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 7, 2015 at 5:50pm

आदरणीय बागी भाई जी , आपकी उपस्थिति से मेरी रचना गौरवांन्वित हुई , आपकी सराहना के लिये आपका हार्दिकाभार ।

Comment by Shyam Narain Verma on February 7, 2015 at 4:54pm
"क्या बात है ..... बहुत खूब ... बधाई आप को "
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 7, 2015 at 1:29pm

अँधेरा , यक़ीनों  से  हटता   नहीं

जलें आप खुद , तब सहर खोजिये..........वाह! क्या कमाल की बात कही

जहाँ से  अकेले ही  जाना है  जब

भला किस लिये हम सफ़र खोजिये......कड़वा सच, किन्तु अवसाद सा

बहुत ही उम्दा गजल, आदरणीय गिरिराज जी. दिली बधाई कुबूल कीजियेगा


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 7, 2015 at 1:25pm

//ख़ुदा का करम ही तो है सीमो ज़र

भला क्यूँ  कहीं अब गुहर खोजिये//

वाह वाह, क्या कहने आदरणीय गिरिराज भंडारी भाई साहब, बहुत ही गहरे अशआर हुयें हैं, अच्छी ग़ज़ल पर बधाई स्वीकार कीजिये.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 7, 2015 at 12:28pm

आदरणीय विजय भाई , आपको गज़ल पसंद आयी तो कहना सार्थक हुआ !! आपकी इनायतों के लिये बहुत शुक्रिया ।

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 7, 2015 at 12:16pm
गिरा एक क़तरा था सागर में कल
ज़रा जाइये अब असर खोजिये
अँधेरा , यक़ीनों से हटता नहीं
जलें आप खुद , तब सहर खोजिये
क्या खूब, आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, बहुत बहुत बधाई, सादर।

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