मारते हो पशु
फैलाते हो हिंसा
'नीच' जाति के हो न
असभ्य कहीं के
कभी नहीं सुधरोगे
इतिहास गवाह है...
मारते तो तुम भी हो
'शिकार' के नाम पर
तुम तो 'नीच' न थे
याद है ?
वो शब्द भेदी बाण
जो असमय वरण किया था
अंधों के पुत्र का,
भागे थे हिरण के पीछे
चर्म चाहिए था न
इतिहास गवाह है...
हिंसक तो तुम दोनों ही हो
एक शौक के लिए
तो दूजा भूख के लिए
हाँ जी हाँ, बिलकुल
इतिहास गवाह है ।
(मौलिक व अप्रकाशित)
पिछला पोस्ट => लघुकथा : सोशल स्टडी
Comment
आदरणीय बागी भाई जी , क्या खूब रचना हुई है , वाह ! कारण बस अलग अलग हैं कर्म वही ! इतिहास गवाह है दोनो का । हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें आदरणीय ॥
हिंसक तो तुम दोनों ही हो
एक शौक के लिए
तो दूजा भूख के लिए
हाँ जी हाँ, बिलकुल
इतिहास गवाह है ।..सही बात ..बहुत बढ़िया
आदरणीय Er. Ganesh Jee "Bagi सर बहुत ही शानदार रचना , गूढ़ अर्थों को समेटे
//हिंसक तो तुम दोनों ही हो
एक शौक के लिए
तो दूजा भूख के लिए
हाँ जी हाँ, बिलकुल
इतिहास गवाह है ।//
आपके शब्दों का चुनाव और उनका शानदार संयोजन .... हार्दिक बधाई स्वीकार करें !"सादर !
आदरणीय बागी सर, वाह क्या खूब लिखा है.... संकेत कितने गूढ़ अर्थ लिए है... विषय और शब्द दोनों का ही कमाल का चयन.
स्वार्थ और जरुरत दोनों ही स्थितियों में शिकार तो शिकार ही है. एक ऐसा विषय जिस पर पूर्वाग्रह हमेशा हावी होते है उस विषय पर इतनी सधी हुई और संतुलित रचना के लिए बहुत बहुत बधाई.
सच कहा आपने. स्वार्थ, चाहे शौक के लिए हो या भूख हेतु. हर कड़वी सच्चाई का इतिहास गवाह है और रहेगा. अभिव्यक्ति पर बहुत-बहुत बधाई, आदरणीय बागी जी
जी हाँ सही कहा जो नहीं देखा वही ठीक...किन्तु कम कोई भी नहीं है एक स्वार्थ में मारता है एक शोंक में एक खाने के लिए एक शिकार के लिए ,एक पैसा कमाने के लिए एक घर में सजाने के लिए ,किसी लिए भी हो है तो हिंसा ही न ...इतिहास गवाह है और रहेगा ..
बहुत अच्छा विषय चयन ..उसको सुन्दरता से शब्दबद्ध किया है बहुत बहुत बधाई आ० गणेश जी इस अतुकांत रचना के लिए
बहुत सुन्दर ॥ अतुकांत रचना के लिये हार्दिक बधाइयाँ |
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