कुष्ट रोग से ग्रसित बिधवा बुढ़िया अकेली ही रहती थी. इकलौता बेटा शादी कर पता नहीं कहाँ जा बसा था. किसी ने बताया कि रोग से मुक्ति चाहिए हो तो जुम्मे के रोज मजार वाले बाबा के पास जाओ. बुढ़िया अगले ही जुम्मे को मजार पर पहुँच गयी । वहाँ झाड़-फूंक चल रही थी. बाबा के एक शागिर्द ने चढ़ावा लिया और घर-परिवार, रिश्तेदारों आदि के बारे में पूछताछ कर एक तरफ बिठा दिया जहाँ पहले से उस जैसे अन्य मरीज इन्तजार कर रहे थे. खैर कुछ देर इन्तजार के पश्चात उसकी बारी आयी ।
बाबा की गंभीर आवाज गूंज उठी, “माई तेरे ऊपर प्रेत का साया है वह भी तीन-तीन, एक तेरा भाई दूसरा तेरा पति और तीसरा एक बाहरी जिन्न है, ये सभी मिलकर तुमको सता रहें हैं”
“बाबा कुछ भी कीजिये किन्तु मेरी बीमारी ठीक कर दीजिये”
“इन तीनों प्रेतों को जला कर राख करना होगा, माई तू इसके लिए गुहार लगा”
बुढ़िया शांत हो गयी, उसके मुख से कोई शब्द नहीं निकल रहा था ।
बाबा की कड़क आवाज पुनः गूंजी, “माई जल्दी गुहार लगा”
बुढ़िया धीमे से बोली, “बाबा मेरे पति को छोड़, बाकी सबको जलाकर राख कर दो”
(मौलिक व अप्रकाशित)
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Comment
सराहना हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय श्याम नारायन वर्मा जी.
बहुत ही सुंदर लघुकथा ,आदरणीय बागी जी. ऐसी स्थिति में संवेदना रखना. सच! दिल को छू गई आपकी लघुकथा. बहुत-२ बधाई
आदरणीय बागी जी
आपकी पंच लाइन चमत्कृत करती है i पति प्रेत योनि में है और् वह कुष्ठ रोग के रूप में सताता भी है पर वह उस योनि में भी वह जीवित रहे i भारतीय नारी जो पति को अपना देवता मानती है , वह ऐसी कामना अवश्य कर सकती है i इनकी संवेदना पर तरस भी आता है और गर्व भी होता है i प्रसाद संभवतः इसीलिये कहते हैं - 'नारी तुम केवल श्रद्धा हो , विश्वास रजत नग पग तल में i पीयूष स्रोत सी बहा करो जीवन के प्यासे मरुथल में i'
“बाबा मेरे पति को छोड़, बाकी सबको जलाकर राख कर दो”----- वाह------- वाह ---------वाह ------
सुन्दर लघुकथा के लिये आपको बधाई ॥ |
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