बह्र : २१२ २१२ २१२२
दूसरों में कमी ढूँढ़ते हैं
कैसे कैसे ख़ुशी ढूँढ़ते हैं
प्रेमिका उर्वशी ढूँढ़ते हैं
पर वधू जानकी ढूँढ़ते हैं
हर जगह गुदगुदी ढूँढ़ते हैं
घास भी मखमली ढूँढ़ते हैं
वोदका पीजिए आप, हम तो
दो नयन शर्बती ढूँढ़ते हैं
वो तो शैतान है जिसके बंदे
क़त्ल में बंदगी ढूँढ़ते हैं
आज भी हम समय की नदी में
बह गई ज़िन्दगी ढूँढ़ते हैं
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
मानव-चरित्र के नकारत्मक पक्ष को कितनी साफ़गोई से उकेरा फिर इशारों में सत्चरित्र बनने का प्रयास और माँझी को वापस पाने की बेकली |सुंदर भाव से भरी गज़ल
प्रेमिका उर्वशी ढूँढ़ते हैं
पर वधू जानकी ढूँढ़ते हैं....बहुत खूब आ० भाई धर्मेन्द्र जी , हार्दिक बधाई l
शुक्रिया Pari जी
बहुत बहुत धन्यवाद गिरिराज जी
प्रेमिका उर्वशी ढूँढ़ते हैं
पर वधू जानकी ढूँढ़ते हैं
वो तो शैतान है जिसके बंदे
क़त्ल में बंदगी ढूँढ़ते हैं --------- बहुत खूब आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , गज़ल के लिये और इन अशआर के लिये दिली बधाइयाँ ॥
अदभुत और सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई आ. धर्मेन्द्र सिंह जी |
धन्यवाद ajay sharma जी
बहुत बहुत शुक्रिया Hari Prakash Dubey जी
बहुत बहुत धन्यवाद Dr. Vijai Shanker जी
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