घनघोर घटायें छायीं हैं, देखो न इनमे खो जाना ,
बड़ी तेज चली पुरवाई है,देखो न इनमे खो जाना !!
पिया , क्यूँ रूठे हो मुझसे,
मुझे आज है तुमको मानना,
पिया निकल पड़ी हूँ घर से,
अपने दफ्तर का पता बताना !!
जिद करती हो जैसे बच्चे,
जाओ मुझे नहीं घर आना,
थोडा दूर रहो अब मुझसे ,
मेरी कीमत का पता लगाना !!
माना भूल हो गयी मुझसे,
अब माफ़ भी कर दो जाना,
कितना प्रेम करती हूँ तुमसे,
मुझे आज तुम्हे है बताना ,
व्यथित हृदय की पीड़ा को ,
समझो सुन लो मेरे प्रियवर,
अश्रुओं की इन धाराओं को ,
कुछ तो कर लो अनुभवकर !!
कुछ समझो मेरी प्राणप्रिये,
जो चाहता हूँ मैं समझाना,
यह जग नहीं उतना अच्छा,
जितना तुमने है समझा, जितना तुमने है जाना !!
गर होता न प्रेम हृदय में ,
क्यों होती अधीर इतने में,
तरस जाते हैं मेरे नयना,
कुछ पल के ही वियोग में,
कैसे बताऊँ अनमोल हो तुम,
मेरे हिय आत्म पति सजना ,
न कहना कभी दूर रहो मुझसे,
वर्ना फिर भर आएंगे मेरे नयना,
कुछ समझो मेरी प्राणप्रिये,
जो चाहता हूँ मैं समझाना,
यह जग नहीं उतना अच्छा,
जितना तुमने है समझा, जितना तुमने है जाना !!
अच्छा निकल गया दफ्तर से,
कुछ काम मुझे था निपटाना,
तुम जल्दी से घर पहुँचो,
बड़ा खराब है ये ज़माना !!
घनघोर घटायें छायीं हैं, देखो न इनमे खो जाना,
बड़ी तेज चली पुरवाई है,देखो न इनमे खो जाना !!
मैं पहुँच रही हूँ घर पे,
तुम जल्दी से घर आना,
बड़ी तेज चली पुरवाई है,
तेरी बाँहों में है समाना !!
अच्छा फ़ोन रखो जल्दी से,
अच्छा सा बना लो खाना,
मैं प्यार करता हूँ तुमसे,
इसलिए पड़ा इतना समझाना,
दुनिया मैं लोग है अच्छे,
उससे भी घातक है दरिन्दे,
तुम्हे बनना पड़ेगा सयाना,
कब तक रोकूंगा मैं दीवाना !!
कब तक रोकूंगा मैं दीवाना,
कब तक रोकूंगा मैं दीवाना !!
घनघोर घटायें छायीं हैं, देखो न इनमे खो जाना,
बड़ी तेज चली पुरवाई है,देखो न इनमे खो जाना !!
© हरि प्रकाश दुबे
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
सोमेश भाई ,रचना पर आपकी उपस्थिति और आपके मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार,रचना वाकई बड़ी हो गयी है देखता हूँ ,इसमें क्या और बेहतर हो सकता है , पुन: धन्यवाद !
आदरणीय जितेन्द्र पस्टारिया साहब ,आपकी उत्साहवर्धक सराहना के लिए,एवं मार्गदर्शन के लिए आपका बहुत-बहुत आभार ,सादर
आदरणीया परी जी, रचना पर आपकी उपस्थिति और आपके मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार ! सादर
पति-पत्नी के दैनिक सम्वाद को कविता में गढ़ने का प्रयास किया है आपने |रचना कुछ ज़्यादा बड़ी है और टाइपिंग त्रुटी भी रह गई है |वैसे भाव सरल और स्पष्ट है |बाकी मित्र भी बहुत कुछ कह चुके हैं |प्रयास पर बधाई |
सुंदर भावों की प्रस्तुति आदरणीय हरी प्रकाश जी. आदरणीय डा.गोपाल जी व् आदरणीय मिथिलेश जी के सुझावों से सहमती रखता हूँ. मैं भी सीख रहा हूँ, अन्यथा न ले. पद्य का लघु होना और गद्य का दीर्घ, ऐसा प्रयास रहे. यह सुधिजनो का मार्गदर्शन है.
आदरणीय डॉ विजय शंकर सर , प्रोत्साहन हेतु आपका हार्दिक आभार ! सादर
आदरणीय समर कबीर जी ,आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत - बहुत धन्यवाद ! सादर
आदरणीय मोहन सेठी जी, ह्रदय से आभार आपका ,सादर !
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