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बादल जब बेज़ार किसी से क्या कहना |
फिर कैसी बौछार किसी से क्या कहना |
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ख़ामोशी, सन्नाटें किस की सुनते है |
बातें है बेकार किसी से क्या कहना |
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बूढ़े पेड़ों पर आखिर क्या गुजरी है |
पढ़ लो बस अखबार किसी से क्या कहना |
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रोते है वाइज़, रोने दो रस्मों को |
कर लो बस यलगार किसी से क्या कहना |
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अपनी छतरी लेकर निकलों राहों में |
बारिश के आसार किसी से क्या कहना |
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जैसे तैसे हम तो खुद को ढो लेंगे |
काँधें जो नाज़ार किसी से क्या कहना |
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दूरी में अब कुर्बत कैसे आएगी |
रिश्तें है बेतार किसी से क्या कहना |
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आदत अपनी जाते - जाते जाएगी |
वो भी है लाचार किसी से क्या कहना |
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महफ़िल में तनहां थे पर खामोश रहे |
कब थे हम दरकार किसी से क्या कहना |
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साहिल से ‘मिथिलेश’ न देखों लहरों को |
जीवन है मझधार किसी से क्या कहना |
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Comment
आदरणीया प्रतिभा जी, रचना पर स्नेह, सराहना और सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार, हार्दिक धन्यवाद
आदरणीय डॉ विजय शंकर सर, प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक आभार.
आदरणीय गिरिराज सर, ग़ज़ल आपको पसंद आई, शेर कोट करने योग्य हुआ, लिखना सार्थक हुआ.. स्नेह, सराहना और सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार, हार्दिक धन्यवाद
बूढ़े पेड़ों पर आखिर क्या गुजरी है
पढ़ लो बस अखबार किसी से क्या कहना -- बहुत खूब , आदरणीय मिथिलेश भाई , बढ़िया गज़ल हुई है , इस शे र का तो कहना ही क्या । दिल से बधाइयाँ स्वीकार करें ॥
आदरणीय maharshi tripathi जी, रचना पर स्नेह, सराहना और सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार, हार्दिक धन्यवाद
आपकी प्रस्तुति दिल तक पहुचती है आ. मिथिलेश जी ,,,आपको बहुत बहुत बधाई ,इस रचना हेतु |
आदरणीया परी जी ग़ज़ल के अंदाज़े-बयां पर दाद के लिए तहे-दिल से शुक्रिया.
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