" बाई , कल से काम पर मत आना "|
" लेकिन मेमसाब , मैंने तो कुछ नहीं किया "|
कहना तो चाहती थी " हाँ , तुमने तो कुछ नहीं किया लेकिन साहब को तो नहीं कह सकती मैं ", लेकिन जुबाँ ने साथ नहीं दिया |
बाई हिकारत से देखती हुई चली गयी , उसके अंदर कुछ दरक सा गया |
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
बहुत बहुत आभार आदरणीय महर्षि त्रिपाठी जी..
बहुत बहुत आभार आदरणीय सोमेश कुमार जी..
बहुत बहुत आभार आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी.
अच्छी लघुकथा पर आपको बधाई आ.विनय कुमार जी |
एक समाजिक वास्तविकता और बहुत से घरों की विवशता को इंगित करती लक्ष्यभेदी लघुकथा पर बधाई |
बढ़िया ... सफल लघुकथा. गहरा प्रभाव .. हार्दिक बधाई आदरणीय विनय जी
बहुत बहुत आभार आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी..
बहुत बहुत आभार आदरणीय परी श्लोक जी..
मार्मिक कथा है i सुन्दर प्रस्तुति i
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