दोपहर में घंटी बजने पर उसने दरवाजा खोला तो वो दरिंदा जबरदस्ती अंदर घुस आया और उसकी अस्मिता को तार तार कर गया | अब शरीर तो जिन्दा बच गया लेकिन आत्मा बुरी तरह लहूलुहान थी | एक ऐसा हादसा जिसके लिए जिम्मेदार वो नहीं थी लेकिन भुगतना उसी को था |
पति ने आने पर जब सँभालने की कोशिश की तो उसे झटक कर वह जोर से रो पड़ी , शायद अब वो किसी पुरुष पर भरोसा नहीं कर पाएगी | एक वहशी की गलती की सज़ा अब पूरे पुरुष समाज को भुगतनी होगी |
.
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
बहुत बहुत आभार आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी | रचना पर अपने विचार रखने के लिए धन्यवाद | आप लोगों की टिप्पणी पाकर लिखना सफल हुआ |
उत्कृष्ट और सफल लघुकथा, इस विषय पर बयानबाजी अधिक और रचनाकर्म कम होता है लेकिन आपने जिस संतुलित ढंग से विषय को सटीक तरीके से लघुकथा में व्यक्त किया है, उसके लिए हृदय से बधाई प्रेषित हैआदरणीय विनयजी. शेष आदरणीय सौरभ सर का आशीर्वाद आपको मिल ही गया है,
बहुत बहुत आभार आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी | सबसे पहले मैं अभिभूत हूँ अपनी लघुकथा पर आपकी इतनी सारगर्भित और विस्तृत टिप्पणी पाकर | आप बिलकुल सच कह रहे हैं कि दैहिक सुचिता जैसी कोई अवधारणा नहीं होनी चाहिए लेकिन समाज ने कुछ ऐसी धारणाएं बना डाली हैं जिससे बाहर निकलने में बहुत समय लगेगा | किसी भी व्यक्ति को किसी ऐसे गुनाह कि सजा कैसे दी जा सकती है जो गुनाह उसने किया ही नहीं हो , लेकिन ऐसे मामलों में स्त्री सजा भुगतती है | अफ़सोस ये भी है कि इस मनोस्थिति को जिसे सबसे ज्यादा समझना चाहिए , वही , यानी कि बाक़ी स्त्रियां , ही नहीं समझती हैं |
ऐसे अपराधों का विरोध करने के लिए कभी कभी स्त्री ,चाहे अनचाहे ऐसी स्थिति में पहुँच जाती है जहाँ उसके लिए सारा पुरुष समाज ही अपराधी हो जाता है | यहाँ भी बाक़ी सारा पुरुष समाज अनजाने में ही दोषी बन जाता है | एक बार पुनः आपका
आभार |
आदरणीय भाई विनयजी, आपकी इस लघुकथा के माध्यम से जिसतरह से बलत्कृता के मनोवैज्ञानिक पक्ष को सशकत ढंग से उभारा गया है उसके लिए आप अवश्य ही बधाई के पात्र हैं. जिस घटना पर किसी स्त्री का कोई बस नहीं, उस घटना केहो जाने पर इसकी सज़ा जिस तरह से वह भुगतती है, यह कुछ और नहीं इस समाज की सोच में पैठ चुकी अतार्किक विकृति का ही नतीजा है.
मैं तो दैहिक शुचिता की पूरी अवधारण को ही ख़ारिज़ करता हूँ. स्थूल शरीर वस्तुतः सूक्ष्म शरीर या अन्तःकरण के सभी अवयवों की दशाओं का प्रस्फुटीकरण (manifestation) होता है. यानि जबतक कोई मन शुद्ध है, शरीर अशुद्ध हो ही नहीं सकता. हम इस राष्ट्र के प्राचीन वांग्मय देखें तो यही ज्ञात होता है कि शरीर को लेकर कोई मंतव्य कभी इतना लिजलिजा एवं इतना अतर्किक नहीं रहा है. लेकिन बाद की सोच और परिपाटियों का कुप्रभाव हमारी सोच और समझ पर ऐसा पड़ा है कि अन्यथा शुचिता हमारी सोच का अनन्य हिस्सा बन गयी.
आपकी इस प्रस्तुति के लिए पुनः हार्दिक बधाई.
मुझे फिल्म ’घर’ का वह दृश्य याद आ गया जहाँ रेखा ने बलत्कृता के पात्र को एनेक्ट करने के क्रम में पति विनोद मेहरा को एक तरह से अपने से दूर कर लिया था. बाद की फिल्म दोनों पात्रों के बीच पुनर्प्रतिस्थापित होती हुई समरसता को प्रस्तुत करती है. ऐसे कॉम्प्लिकेटेड विषय पर यह ’घर’ एक बहुत ही सशक्त फिल्म थी.
शुभेच्छाएँ
बहुत बहुत आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी | आपकी सारगर्भित टिप्पणी से लिखना सार्थक हुआ |
बहुत बहुत आभार आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी | इस घटना के बाद पुरुषों के प्रति उपजे अविश्वास के चलते उसने पति को झटक दिया और अपनी बेबसी पर रो पड़ी | धन्यवाद आपकी प्रतिक्रिया के लिए..
एक कटु सच्चाई है आपकी इस लघु कथा में ....यही कारण है ऐसी घटनाओं के बाद मनोचिकित्सकों की आवश्यकता होती है एक स्त्री की मनोस्थिति को बखूबी समझा रही है लघु कथा ...जिसके लिए आप बधाई के पात्र हैं |
मोहन बेगोवाल जी की बात से सहमत हूँ ,विनय जी बात कुछ अधूरी रह गई थी , तब तक पोस्ट हो गया .....सुन्दर रचना !
आदरणीय विनय जी......आत्मा बुरी तरह लहूलुहान थी...बधाई , रचना सुन्दर ,सार्थक है ........पति ने आने पर जब सँभालने की कोशिश की तो उसे झटक कर वह जोर से रो पड़ी.........ये क्यों हुआ ?....
बहुत बहुत आभार आदरणीय मोहन बेगोवाल जी .वज़ह तो सिर्फ इंसान की पाशविकता ही होती है इन मामलों में..
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online