For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मुहब्बत खुदा है ~ गजल

122 122 122 122

सुना था किसी से मुहब्बत खुदा है ।
हुयी तो ये जाना कोई हादसा है ।

थे तनहा कभी फिर भी अच्छे भले थे ,
सिवा दर्द के उसकी यादोँ मेँ क्या है ।

भला किस से कह दूँ भला कौन समझे ,
के जिसको लगी है वही जानता है ।

गये अपने दिल से गये अपनी जाँ से ,
ये है मर्ज ऐसी न जिसकी दवा है ।

अजब जिन्दगी के ये हालात समझो ,
वो ही वो है दिल मेँ जो दिल से जुदा है ।

मौलिक व अप्रकाशित
नीरज मिश्रा

Views: 954

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 23, 2015 at 9:53pm

आ. प्रेम भाई , बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई है , आपको दिली बधाइयाँ ॥

Comment by khursheed khairadi on February 23, 2015 at 9:33am

सुना था किसी से मुहब्बत खुदा है ।
हुयी तो ये जाना कोई हादसा है ।

आदरणीय नीरज भाई ,उम्दा ग़ज़ल हुई है |सादर अभिनन्दन |

Comment by gumnaam pithoragarhi on February 22, 2015 at 5:32pm

बहुत खूब ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाए....

Comment by Samar kabeer on February 21, 2015 at 10:04pm
जनाब नीरज मिश्रा "प्रेम" जी ,आदाब,"मर्ज़" शब्द को ज़रूरत पडने पर "मरज़" भी बांध सकते हैं |
Comment by Neeraj Nishchal on February 21, 2015 at 5:02pm
आदरणीय रामगोपाल वर्मा जी बहुत बहुत तहे दिल से आभार ।
Comment by Neeraj Nishchal on February 21, 2015 at 4:58pm
आदरणीय मुकेश कुमार जी हार्दिक आभार ।
Comment by Neeraj Nishchal on February 21, 2015 at 4:57pm
आदरणीय उमेश भाई सादर आभार ।
Comment by Neeraj Nishchal on February 21, 2015 at 4:56pm
वाह वाह सोमेश कुमार जी बहुत खूब बहुत बहुत शुक्रिया ।
Comment by Neeraj Nishchal on February 21, 2015 at 4:54pm
आदरणीय कबीर जी बहुत बहुत शुक्रिया आपकी हौँसला हाफजाई के लिये और इसमेँ अन्यथा लेने जैसी क्या बात है बाल्कि आपने तो एक शाब्दिक समझ दी मुझे आपके इस्लाह के लिये बहुत बहुत धन्यवाद । इसी प्रकार आप हम जैसोँ का मार्गदर्शन करते रहेँ हार्दिक निवेदन है । धन्यवाद साधुवाद ।
Comment by Neeraj Nishchal on February 21, 2015 at 4:44pm
आदरणीय प्रकाश दुबे जी आपकी प्रतिक्रिया ने बहुत प्रोत्साहित किया है सादर आभार प्रकट करता हूँ ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service