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आदरनीय नीरज भाई , अच्छी गज़ल कही है , हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें ।
अश्क बन फिर बहा कोई -- ये मिसरा बेबहर है , अश्क़ की मात्रा 21 होती है , आपने 12 ले लिया है ।
अच्छी ग़ज़ल वाहह
वाह खूब ग़ज़ल हुई है भाई जी
पुनः बधाई आदरणीय नीरज जी, सुन्दर रचना !
कहीँ तो हो खुदा कोई ।
सुने दिल की सदा कोई ।
आदरणीय नीरज भाई अच्छी ग़ज़ल हुई है | आदरणीय मिथिलेश जी वाला 'गुनिजन ' तो मैं नहीं हूं ,किंतु आपके प्रयास को सादर नमन करते हुये स्नेह सहित अर्ज़ है कि मतले के अनुसार ख़ुदा-सदा में दाल +अलिफ़ का (दा ) काफ़िया(मुतलक़ मौसूल ) है तथा 'कोई' रदीफ़ है | मतले का काफ़िया तथा रदीफ़ ही सभी शेरों में निभाया जाना चाहिए | अतः आप को या तो मतले में काफ़िया बदलकर ' कहीं तो हो ख़ुदा कोई \सुने दिल का कहा कोई ' कर लेना चाहिए | अथवा आपको ख़ुदा-सदा-जुदा-अदा-रिदा-फ़िदा के काफ़ियों के साथ अशहार की कोशिश करनी चाहिय | भाई जी अन्यथा न ले मैं भी इसी तरह सिखा हूं और सीख रहा हूं .....सीखता रहूँगा |सादर
bhavprd asaar lge ,niyam-vyakrn to mujhe malum nhin,bdhai
आदरणीय नीरज भाई जी रचना पर बधाई ...
मतले के अनुसार शायद बाकी अशआर नहीं हुए है ....
बाकि गुनिजन ही बताएँगे
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