For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सत्य की लम्बी उमर हो - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

2122     2122

***************
पाप   का  अवसान  मागूँ
पुण्य  का  उत्थान   मागूँ
**
सत्य  की  लम्बी उमर हो
झूठ  को  विषपान   मागूँ
**
व्यर्थ   है  आकाश  होना
सिर्फ  लधु  पहचान  मागूँ
**
राजपथ  की   राह   नीरस
पथ  सदा  अनजान  मागूँ
**
स्वर्ण   देने   की  न  सोचो
मैं तो  बस  खलिहान मागूँ
**
कोयलों   का   वंश   फूले
आज  यह  वरदान   मागूँ
**
साथ ही पर  काक के हित
इक  मधुर  सा गान मागूँ
**
मिल गए  नवरात  मुझको
उसके हित  रमजान  मागूँ
**
भूल  निश्चित  मानवों  से
इसलिए    अवदान   मागूँ
**
मौलिक और अप्रकाशित

Views: 818

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 8, 2015 at 12:53pm

आ0 भाई सौरभ जी , आपको ग़ज़ल अच्छी लगी यह प्रसन्नता का विषय है .नवरात को मैने बहुवचन के तौर पर लेते हुए मिल गये का प्रयोग किया है यदि यह अनुचित है तो मार्गदर्शन करें . साथ ही यह भी जानना छ्छूंगा की यदि ग़ज़ल मुसलसल न हो तो क्या उसमें आपके द्वारा उद्धृत शेर की तरह की अनवरतता का प्रयोग करना ठीक नही है ? शेष शुभ शुभ ...


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 25, 2015 at 12:05pm

आपकी इस ग़ज़ल से गुजरते हुए बहुत-बहुत अच्छा लगा, आदरणीय लक्ष्मण धामीजी.
शेर सधे हुए हैं.

अलबत्ता, जो बात मुझे समझ में आयी है, ग़ज़ल का निम्नलिखित शेर ’साथ ही पर’ के कारण सभी शेरों के बीच एकसूत्रता या अनवरतता का कारण बनता हुआ-सा है. जबकि आपकी ग़ज़ल मुसलसल ग़ज़ल नहीं है.
साथ ही पर  काक के हित
इक  मधुर  सा गान मागूँ

नवरात केलिए मिल गयी होना चाहिये.
मिल गए  नवरात  मुझको
उसके हित  रमजान  मागूँ

इन शेरों के लिए पुनः बधाई.

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 25, 2015 at 11:04am

आ0 भाई खुर्शीद  जी , आपको गजल पसंद आई यह मेरे लिए हर्ष का विषय है । स्नेहाशीष के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 25, 2015 at 11:03am

आ0 भाई उमेश जी गजल की प्रशंसा कर उत्साहवर्धन करने के लिए हार्दिक आभार ।

Comment by khursheed khairadi on February 25, 2015 at 10:32am

सत्य  की  लम्बी उमर हो

झूठ  को  विषपान   मागूँ

**

व्यर्थ   है  आकाश  होना

सिर्फ  लधु  पहचान  मागूँ

**

राजपथ  की   राह   नीरस

पथ  सदा  अनजान  मागूँ

आदरणीय लक्ष्मण साहब ,बहुत खुबसूरत ग़ज़ल हुई है |हार्दिक बधाई |सादर अभिनन्दन |

Comment by umesh katara on February 24, 2015 at 8:26pm

वाह वाह

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 24, 2015 at 11:42am


आ0 भाई विजय शंकर जी, आपकी उपस्थिति से गजल का मान बढ़ा । हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 24, 2015 at 11:41am


आ0 भाई मिथिलेश जी , उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 24, 2015 at 11:41am


आ0 भाई हरिप्रकाश जी, गजल की प्रशंसा कर उत्साहवर्धन के लिए आभार । उपस्थिति बनाए रखें ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 24, 2015 at 11:41am


आ0 भाई समर कबीर जी, दिल से दिए गये इस शुभाशीष के लिए कोटि कोटि धन्यवाद । आपको गजल पसंद आयी । लेखन सार्थक हुआ । सादर.....

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Monday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service