For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - सब रस्ते इन शहरों के बातूनी हैं ( गिरिराज भंडारी )

22   22  22  22   22  2

ये कैसी महफिल में मुझको ले लाया

हर कोई लगता है गुमसुम, थर्राया

 

सब रस्ते इन शहरों के बातूनी हैं

गाँवों की गलियों को सब ने फुसलाया

 

साहिल साहिल बात चली है लहरों में

तूफ़ाँ ने जब तोड़ी कश्ती, इतराया                                                                                                                                                               

क्या जज़्बा हाथों से बहते रहता है ?

धोते ही हाथों को पानी गँदलाया

 

दोनों कूदे संग प्रेम की खाई में

प्रश्न कहाँ तब, किसने किसको बहकाया

 

बाग़ों, फूलों, पगडंडी की बातें कर

धुयें उगलती चिमनी से मन उकताया  

 

झूठ बहुत वाचाल मिला जो झूठों में    

सच के आगे वही झूठ था हकलाया

 

धीरे धीरे यादें सब मिट जायेंगी

जैसे वक़्त हुआ तो माजी धुँधलाया 

*********************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

 

 

 

 

 

 

Views: 916

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 25, 2015 at 12:09am
आदरणीय गिरिराज सर बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई है। मतलाउउम्दा हुआ है। क्या तेवर है ग़ज़ल के । पढ़कर आनंद आ गया। पूरी ग़ज़ल एक रौ में पढ़ गया। एक शेर में थोड़ी उलझन लगी इसलिए इस मिसरे को कुछ यूं पढ़ा-
धू धू करती चिमनी से मन उकताया।
इस सुन्दर ग़ज़ल पर हार्दिक बधाई। मतले पर विशेष बधाई।
Comment by maharshi tripathi on February 24, 2015 at 10:48pm

अत्यंत सुन्दर गजल पर आपको हार्दिक बधाई आ.गिरिराज सर ........


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 24, 2015 at 5:12pm

आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , मेरा व्यक्तिगत तौर पर यह मानना है कि कोई भी कभी मुकम्मल नहीं हो पाता चाहे ज़िन्दगी भर सीखते रहे । विचार , अनुभव और भाव अपने अपने हो सकते हैं , अलग अलग, पर विधा और व्याकरण तो एक  ही मान्य होना चाहिये , जिसमे गलती की गुंजाइश हमेशा रहती है ॥ आप निःसंकोच ग़लतियाँ बताया कीजिये , मै आपका जीवन भर सीखने वाला आपका अनुज हूँ . मै कभी मुकम्मल नहीं हो सकता । पूर्ण मै केवल ईश्वर को मानता हूँ ॥ सादर निवेदन ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 24, 2015 at 3:20pm

आदरणीय श्याम भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका आभारी हूँ ।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 24, 2015 at 2:05pm

नहीं अनुज

कोई ऐसी बात नहीं  i दरअसल आप इतने मुकम्मिल गजलकार है कि मुझे सोचना पड़ता है कि मेरी टीप तो गलत नहीं है i सादर i

Comment by Shyam Narain Verma on February 24, 2015 at 12:51pm
बहुत बढ़िया गजल बधाई आपको । 

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 24, 2015 at 12:34pm

आदरणीय बड़े भाई , मुझे हार्दिक दुख हुआ ,और शर्मिन्दगी भी , कि मेरे किसी व्यवहार के कारण आपको मेरी ही गलती बताने के लिये अपने अनुज से क्षमा याचना करनी पड़ी । सच में मेरी ज़िन्दगी का ये दुखद क्षण है । मैं अपने उस व्यवाहार को याद नहीं कर पा रहा हूँ , पर कुछ न कुछ तो किया ही होउँगा ऐसा । जाने अनजाने में सही अगर आपका दिल दुखया हो तो मै आपसे क्षमा मांगता हूँ ।  ग़ज़ल पर आपकी स्नेह मयी उपस्थिति के लिये औस सलाह के लिये आपका आभारी हूँ ।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 24, 2015 at 12:22pm

आ 0  अनुज

आपकी गजल पर कुछ कहने से डर लगता है  पर जो मन में आया है वह कहना भी जरूरी है

क्या जज़्बा हाथों से बहते रहता है ?---                  क्या जज्बा हाथो से बहता रहता है

धोते ही हाथों को पानी गँदलाया                           हाथों को धोते ही पानी गंद्लाया

छमा याचना सहित i सादर i

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 24, 2015 at 12:13pm

आदरणीय परि एम श्लोक भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 24, 2015 at 12:12pm

आदरणीय विजय भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ॥

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय चेतन जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
5 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।"
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरनीय लक्ष्मण भाई  , रिश्तों पर सार्थक दोहों की रचना के लिए बधाई "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  भाई  , विरह पर रचे आपके दोहे अच्छे  लगे ,  रचना  के लिए आपको…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई चेतन जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद।  मतले के उला के बारे में…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए आभार।"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  सरना साहब,  दोहा छंद में अच्छा विरह वर्णन किया, आपने, किन्तु  कुछ …"
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ.आ आ. भाई लक्ष्मण धामी मुसाफिर.आपकी ग़ज़ल के मतला का ऊला, बेबह्र है, देखिएगा !"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service