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चिलमन को ज़रा ऊपर , नज़रों से उठा दूँ तो
पर्दों की हक़ीक़त क्या , दुनिया को बता दूँ तो
ख़्वाबों में ख़यालों में , जीने का मज़ा क्या है
कुछ रंग हक़ीकत के , आज उसपे चढ़ा दूँ तो
ये उखड़ी हुई सांसे , लगतीं हैं बुलातीं सी
उन सांसों में मै अपनीं , सांसें भी मिला दूँ तो
नज़रों ने कही थी जो , नज़रों से कभी मेरी
वो बात सरे महफिल , मैं आज बता दूँ तो
राहे वफा में फैले , गर ख़ार डराते हैं
वो ख़ार हटा कर मैं , फूलों से सजा दूँ तो
सौ रंग लगाया है , होली में जहाँ तू ने
मैं रंग मुहब्बत का थोड़ा सा लगा दूँ तो.
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
बहुत बहुत आभार आपका , आदरनीय जितेन्द्र भाई , हौसला अफज़ाई के लिये ।
बहुत-बहुत सुंदर गजल,आदरणीय गिरिराज जी. हर एक शेर दिल को छू जाता है, तहे दिल से बधाई स्वीकारें
आदरनीया राजेश जी , आपकी सराहना से मन आश्वस्थ हुआ ! सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।
वाह तीसरी ये तरही ग़ज़ल पढ़ रही हूँ ...होली की धूम मच रही है क्या कहने आपकी ग़ज़ल का भी जबाब नहीं आदरणीय गिरिराज जी
ख़्वाबों में ख़यालों में , जीने का मज़ा क्या है
कुछ रंग हक़ीकत के , आज उसपे चढ़ा दूँ तो---क्या कहने
नज़रों ने कही थी जो , नज़रों से कभी मेरी
वो बात सरे महफिल , मैं आज बता दूँ तो------ये धमकी है या ब्लेकमेलिंग जी ?? :))))) उम्दा शेर
सौ रंग लगाया है , होली में जहाँ तू ने
मैं रंग मुहब्बत का थोड़ा सा लगा दूँ तो.---शानदार ...हाँ एक बात यदि सौ रंग के लिए आया है तो सौ रंग लगाए हैं होना चाहिए
आपको बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रंगीली ग़ज़ल के लिए
आदरणीय सर्वेश भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ॥
आदरणीय गिरिराज सर ,,,मेरी टिप्पणी में आ.बागी टाइप हुआ है जो दरअसल आदरणीय बागी साहब है ,,,आ.बागी साहब को पूरे अद्दर के साथ ..क्षमापार्थी |
आदरणीय शिज्जु भाई , हौसला अफज़ाई के लिये आपका दिली शुक्रिया ॥
आदरणीय गिरिराज सर बेहद कसी हुई ग़ज़ल है गज़लियत से भरी हुई बहुत बहुत बधाई आपको
आदरणीया प्राची जी , बहुत दिनों बाद आपओ मंच मे देखा , बड़ी खुशी हुई ॥ गज़ल की सराहना के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ ॥
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