छन्द – छन्न पकैया
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छन्न पकैया छन्न पकैया , होली फिर से आई
बूढ़े बाबा की भी देखो , जागी है तरुणाई
छन्न पकैया छन्न पकैया , रंग प्यार का लेके
लूले लंगड़े भी दौड़े जो , चलते हैं ले दे के
छन्न पकैया छन्न पकैया, होली बड़ी निराली
कौवा रंग लगा के पूछे , कैसी लगती लाली
छन्न पकैया छन्न पकैया , आ जा भंग चढ़ायें
फिर बैठे बैठे घर में ही, आसमान तक जायें
छन्न पकैया छन्न पकैया , सूना सूना लागे
जिनके मित्र हुये परदेशी, लगते मुझे अभागे
छन्न पकैया छन्न पकैया , सारे बंधन तोड़ो
मन कहता है आज न रोको, मुझको खुल्ला छोड़ो
छन्न पकैया छन्न पकैया , होगी छेड़ा छाड़ी
हुड़दंगी की टोली आई , रंगों की ले गाड़ी
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
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छन्न पकैया छन्न पकैया , सूना सूना लागे
जिनके मित्र हुये परदेशी, लगते मुझे अभागे
छन्न पकैया छन्न पकैया , गुझिया, पूआ, पूरी
लेके रंग अबीर लगा जा, मिट जाएगी दूरी --- एक कोशिश मेरी भी
आदरणीय सोमेश भाई , छंद प्रयास की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ॥
सुंदर आनन्ददायक रंगो से सराबोर छन्न-पकैया पर पूरे उल्लास और हुडदंग के साथ होली और रचना पर बधाई निवेदित |
आदरणीय मोहन भाई , सराहना के लिये आपका दिली शुक्रिया ॥
आदरणीय कृष्णा भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका आभार ।
आदरनीय नादिर खान भाई , आपको भी होली की बधाइयाँ । रचना की सराहना के लिये आपका आभार ।
आदरणीय बागी भाई जी , आपकी सराहना ने रचना का मान बढ़ा दिया । आपका बहुत शुक्रिया ॥
आदरणीय जितेन्द्र भाई , सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ।
आदरणीया प्रतिभा जी , उत्साह वर्धन के लिये आपका आभार ।
आदरणीय मिथिलेश भाई , छंद प्रयास आपको संतुष्ट कर पाया तो मेरी मेहनत सफल हो गई , आपका आभारी हूँ ॥
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