ओ भाई ,
नहीं , आपसे नहीं , होली दिवाली वालों से नहीं
किसी भी कौम के आस्तिकों नहीं
मै उनसे मुखातिब हूँ
अंध श्रद्धा , अंध विश्वास का ढोल पीटने वाले भाइयों से
हाँ , आपसे ही कह रहा हूँ
कितनी बार देखे हैं सर्टिफिकेट, डाक्टरी
इलाज कराने से पहले
जांचे हैं कभी ?
भेजे यूनिवर्सिटी तस्दीक करने के लिये सही है या गलत ,
फर्जी तो नहीं है सर्टिफिकेट देखे कभी , अपनीं आँखों से
कर लिये न.... विश्वास , वही.....अंध विश्व्वास
हाँ आपसे ही कह रहा हूँ
कैसे जाना अपने यही शख्स है मेरा पिता ,
पैदा तो माँ ने किया था ,
पंद्रह इंच के थे उस समय
न बोल सकते थे , न समझ सकते थे
माँ ने बताया न ?यही हैं आपके पिता
किये न अंधविश्वास , माँ पर
या जाँच कराये थे , डी एन ए
कराये भी थे , तो जाँच करने वाले की विश्वसनीयता का क्या ?,
मशीन बनाने वाले का क्या ? , मशीन का क्या ?
अगर माँ किसी और की तरफ इशारा कर देती तो ?
मानते या नहीं ? मानते ही
थोड़ा तो झाँक लेते ,
खुद के किये अंध विश्व्वासों पर
जिस सौ रुपट्टी के ताले को अपने दरवाज़े में लगा के आप निश्चिंत हो जाते हैं
वो क्या है , क्या कहूँ उसे मैं ,
कितना गिनवाऊँ , छोड़िये
हर चीज़ परख नली में नहीं आती , भाई साहब , समझ लीजिये
चार क्लास पढ क्या लिये , लगे समझानें
श्रद्धा ऐसी ठीक नहीं ,
ये विश्वास नहीं ये तो अन्ध विश्वास है
जाइये , जाइये किसी और मुल्क में
ये हमारा देश है
श्रद्धा का देश , विश्वास का देश
*****************************
मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरनीय विजय प्रकाश शर्मा भाई जी , बहुत बहुत आभार आपका , रचना की सराहना के लिये ,
आ. गिरिराज भाई !
इस सशक्त चोट ने तिलमिला दिया है आधुनिकता के मिथ्याभिमान को. बहुत बधाई।
आदरणीय जितेन्द्र भाई , रचना को स्वीकार करने के लिये आपका आभारी हूँ ॥
शुरू से अंत तक आपकी कविता की पूर्ण दार्शनिकता बांधे रखती है, और अंतिम पंक्ति हमें दुनिया की तुलना में हमारी सबसे बड़ी धरोहर , हमारी संस्कृति के प्रति हमें सजग बनाती है. इस सुंदर कविता पर आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय गिरिराज जी
आदरनीय खुरशीद भाई , रचना के अनुमोदन के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥
आदरणीय मिथिलेश भाई , रचना के भाव स्वीकार करने , और सराहना करने के लिये आपका शुक्रिया ॥
आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , आपसे सराहना पाके रचना का मान बढ गया । आपका हृदय आभारी हूँ ।
चार क्लास पढ क्या लिये , लगे समझानें
श्रद्धा ऐसी ठीक नहीं ,
ये विश्वास नहीं ये तो अन्ध विश्वास है
जाइये , जाइये किसी और मुल्क में
ये हमारा देश है
श्रद्धा का देश , विश्वास का देश
आदरणीय गिरिराज सर ,इन पंकितियों ने राष्ट्र-गौरव की भावना को प्रबल किया है |सादर अभिनन्दन |
आदरणीय गिरिराज सर, ईश्वर द्वारा प्रदत्त यह अमूल्य जीवन विश्वास और आस्था पर जीते है, जिसे अनास्था और अविश्वास आधारित नहीं जिया जा सकता है. अंधविश्वास शब्द का दुष्प्रचार करते तथाकथित वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाले भौतिकवादी लोगो पर तीखा व्यंग्य करती सुन्दर कविता हेतु हार्दिक बधाई. आस्था और विश्वास के महत्त्व को अभिव्यक्त करती सुन्दर कविता की प्रस्तुति हेतु आभार, सर .
प्रिय अनुज
जाइये , जाइये किसी और मुल्क में
ये हमारा देश है
श्रद्धा का देश , विश्वास का देश ------------ वाह ---- यह है हमारी विरासत जिस पर हमें गर्व है i सादर i
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