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शर्मिंदा आज किसी रूह की पैदाइश होगी---रूह में ह साइलेंट है
गैरों के आगे फिर सूरत की नुमाइश होगी
फिर से टूटेगा रब की रहमत का देख भरम
फिर आज किसी की किस्मत की आजमाइश होगी---(आजमाइश की मात्रा गिराकर अजमाइश किया है)
ज़र्रे ज़र्रे में महकेगी दौलत की खुशबू
नजरों नजरों में फिर कोई फर्माइश होगी
हँस हँस के मिटेगी जल जल के लुटेगी रात शमा
धज्जी धज्जी दिल टूटी टूटी ख्वाइश होगी----(ख्वाहिश को ख्वाइश लिया है )
रब तेरी इनायत के मिल जाएँ कभी दो कतरे
तहरीरों में तेरी कोई तो गुंजाइश होगी
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
बहुत सुंदर मर्मस्पर्शी गजल, आदरणीया राजेश दीदी. ह्रदय से बधाई स्वीकारें
महनीया
आपकी रचना पढ़कर मेरे दिलो दिमाग पर वह मंजर उभरते रहे जब जब मेरी बेटी का प्रदर्शन मुझे करना पडा i देखने के बाद के ' ना ' का दर्द बहुत बार हमने झेला है i बेटी ने भी झेला होगा i पर आखिरकार रब की इनायत के कतरे मिल ही गए i आपकी गजल अपने आप में एक इतिहास है i सादर i
आदरणीया राजेश कुमारी जी, बहुत ही सुन्दर रचना है ,
फिर से टूटेगा रब की रहमत का देख भरम
शर्मिंदा आज किसी रूह की पैदाइश होगी......वाह
ज़र्रे ज़र्रे में महकेगी दौलत की खुशबू
नजरों नजरों में फिर कोई फर्माइश होगी....खूबसूरत , हार्दिक बधाई आपको ! सादर
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