२१२२ ११२२ १२२२ २२/११२ तेरी मुस्कान तेरी शान तेरा ये जलवा काजू किशमिश से भरा जैसे बादामी हलवा तू न होता तो भला कैसे दिल से दिल मिलते ऐ हंसी गुल किसी जूही से मुझे भी मिलवा तेरी खुशबू में छुपा धड़कने दूंगा दिल की बात जैसे भी बने बात तो मेरी बनवा फायले दिल में हैं उनके तमामों नाम लिखे फैसला होने से पहले मेरी अर्जी लगवा उसके पहलू में जियूं आरजू है इतने सी उसके सीने में मेरा प्यार जगा दे मितवा आखरी है ये मेरा फैसला तू भी सुन ले |
गर जो उसका न हुआ पहनूं मैं कपडे भगवा
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय आशुतोष भाई , अच्छी गज़ल हुई है , आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥
इस लाजवाब, उम्दा ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई |
वाह वाह वाह
आदरणीय डॉ आशुतोष मिश्रा जी सुन्दर अशआर हुए है .. हार्दिक बधाई... आदरणीय गुमनाम सर जी की बात पर ध्यान जरुर दीजियेगा.
आशुतोष जी ग़ज़ल अच्छी कही है पर मुझे काफिये थोडा सा गलत लग रहे है.............
हंसी -दिल्लगी -मिन्नत-ख्वाहिश -पूर्ण समपर्ण के भावों की यात्रा करती गेय और आनन्ददायनी गज़ल
तू न होता तो भला कैसे दिल से दिल मिलते
ऐ हंसी गुल किसी जूही से मुझे भी मिलवा
तेरी खुशबू में छुपा धड़कने दूंगा दिल की
बात जैसे भी बने बात तो मेरी बनवा--------------- आदरणीय आशुतोष जी i मैंने आपकी गजल् तरन्नुम में गुनगुनायी i बहुत मजा आया i सादर i
आखरी है ये मेरा फैसला तू भी सुन ले |
गर जो उसका न हुआ पहनूं मैं कपडे भगवा ...वाह , डॉक्टर आशुतोष जी ,सुन्दर ग़ज़ल बधाई आपको !
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