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एक बार फिर शर्माजी ने जेब में हाँथ डाल कर चेक किया , गुलाल की पुड़िया पड़ी हुई थी | चटख लाल रंग का गुलाल ख़रीदा था उन्होंने ऑफिस आते हुए और सोच रखा था कि आज तो लगा के ही रहेंगे | उम्र तो खैर उनकी ५५ पार कर चुकी थी लेकिन पता नहीं क्यों इस बार होली खेलने की इच्छा प्रबल हो गयी थी उनकी |
५ महीना पहले ही ट्रांसफर होकर आये थे इस ऑफिस में | आते ही देखा कई नयी उम्र की लड़कियां थीं यहाँ | कहाँ पिछला ऑफिस , जहाँ सिर्फ पुरुष ही थे और वो भी काफी खडूस किस्म के | लेकिन यहाँ , एक तो उनके विभाग में भी थी | धीरे धीरे सबसे घुल मिल गए और वक़्त बेवक़्त हंसी मज़ाक भी करने लगे थे , खास कर उस लड़की के साथ | पत्नी को आश्चर्य होता था कभी कभी , जब वो प्रसन्नचित्त घर लौटते थे क्यूंकि पिछले कई सालों से हमेशा मुह लटकाये ही आते देखा था उनको | कभी पूछ भी बैठती थी कि क्या बात है तो कोई न कोई बहाना बना देते |
खैर , आज होली के पहले आखिरी दिन था जब ऑफिस खुला था और आज तो सब लोग होली खेलने के मूड में थे | खुदा खुदा करते शाम हुई , लोगों ने एक दूसरे को अबीर गुलाल लगाना आरम्भ कर दिया | वो भी अपनी सीट से उठे , मुस्कुरा कर उसकी तरफ देखा और जेब से गुलाल निकाल कर उसके गालोँ पर मल दिया | अभी हैप्पी होली कहने ही वाले थे कि वो पलटी और मग्गे से रंग उनके ऊपर फेंक दिया | रंग से बचने के लिए भागे ही थे कि आँख खुल गयी , बिस्तर से गिर पड़े थे और पत्नी रसोई का गन्दा पानी उनके ऊपर फेंक कर चिल्ला रही थी " किसको सपने में उछल उछल कर हैप्पी होली कह रहे थे , हमें तो पिछले कई सालों में नहीं कहा " |

मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by विनय कुमार on March 6, 2015 at 11:26pm

हा हा , हर ५० पार को ये अपनी कथा ही लगेगी , खैर होली है तो थोड़ी चुहल भी जरुरी है | बहुत बहुत आभार आपका..

Comment by somesh kumar on March 6, 2015 at 11:15pm

क्या सर जी रंग में भंग डाल दिया आपने ,ये तो कुछ-कुछ हमे अपनी सी कहानी लग रही थी |खैर ,इस खुबसुरत सपने पर हार्दिक बधाई 

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