2222 2112 2222
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पत्थर पर भी प्यार जताया करते हैं
इक नूतन संसार बसाया करते हैं
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लज्जत तुमको यार तनिक तो देंगे ही
दिल से हम असआर पकाया करते हैं
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तनहा हमको आप समझना लोगो मत
हम गम का दरवार लगाया करते हैं
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कुबड़ी अपनी पीठ हुई मत पूछो क्यों
यादों का हम भार उठाया करते हैं
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अश्कों से मत पूछ जिगर तक आजा तू
आँसू केवल सार बताया करते हैं
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जीवन बीता किंतु न समझे यारो हम
कैसे दिल के तार बजाया करते हैं
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मौलिक और अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ’मुसाफिर’
Comment
आ० भाई भाई श्याम जी ग़ज़ल पर उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद .
आ० भाई महर्षि जी हार्दिक आभार l
आ० भाई कृष्णा जी , उत्साहवर्धन के लिए आभार l
Aadarniya Dhami Ji,
Anand Aa gaya. Dil ko choo gaee.
कुबड़ी अपनी पीठ हुई मत पूछो क्यों
यादों का हम भार उठाया करते हैं
इस खूबसूरत गजल पर आपको हार्दिक बधाई आ.धामी जी |
सुन्दर गजल हुयी है बहुत बहुत बधाई!!सादर!
आ0 भाई हरिप्रकाश जी उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार .
आ0 भाई गोपाल नारायण जी , उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद .
आ0 भाई भुवन जी , आपको ग़ज़ल अच्छी लगी लेखन सार्थक हुआ . अनुमोदन के लिए हार्दिक धन्यवाद .
आ0 भाई
अश्कों से मत पूछ जिगर तक आजा तू
आँसू केवल सार बताया करते हैं...बहुत सुन्दर आदरणीय लक्ष्मण धामी जी , बधाई आपको ! सादर
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