चुभन मत याद रखना तुम मिली जो खार से यारो
रहे बस याद फूलों की मिले जो प्यार से यारो
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नहीं शिव तो हुआ क्या फिर उपासक तो उसी के हम
गटक लें द्वेष का विष अब चलो संसार से यारो
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न समझो हक तम्हें तब तक सुमारी दोस्तो में है
रखो गर दुश्मनी भी तो मिलो अधिकार से यारो
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हमें जल के ही मरना था जलाया नीर ने तन मन
खुशी दो पल रही केवल बचे अंगार से यारो
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भरत वो हो नहीं सकता सदा लंकेश ही होगा
करे जो दंभ जीवन में मिले पदभार से यारो
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रही है रीत स्वागत की अगर पाहुन कोई आए
तमस अपमान पाए क्यों हमारे द्वार से यारो
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न जाने कैसी रस्में हैं उड़ेले प्यार हम जाते
मगर नफरत ही आती है सदा उस पार से यारो
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मौलिक और अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ’मुसाफिर’
Comment
आ0 प्रबुद्ध जानो का ग़ज़ल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए कोटि कोटि धन्यवाद . आशा है स्नेह बनाए रखेंगे
हर बार की तरह हर अशआर इतनी गहरी बात कहता है कि केवल कलम और रचनाकर के लिए साधुवाद ही प्रेषित किया जाए |
भरत वो हो नहीं सकता सदा लंकेश ही होगा
करे जो दंभ जीवन में मिले पदभार से यारो
न जाने कैसी रस्में हैं उड़ेले प्यार हम जाते
मगर नफरत ही आती है सदा उस पार से यारो -- लाजवाब शे र !! ग़ज़ल के लिये और इन अशआर के लिये हार्दिक बधाइयाँ ॥
नहीं शिव तो हुआ क्या फिर उपासक तो उसी के हम
गटक लें द्वेष का विष अब चलो संसार से यारो
सुन्दर रचना!! बधाई आदरणीय!!
आदरणीय लक्ष्मण धामी सर जी, बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है, हार्दिक बधाई निवेदित है
सुमारी/को लेकर सशंकित हूँ.
हमें जल के ही मरना था जलाया नीर ने तन मन
खुशी दो पल रही केवल बचे अंगार से यारो......... इस शेर के मिसरा-ए-उला और सानी तक नहीं पहुँच पा रहा हूँ.
ये अशआर बहुत बेहतरीन हुए है-
नहीं शिव तो हुआ क्या फिर उपासक तो उसी के हम
गटक लें द्वेष का विष अब चलो संसार से यारो
भरत वो हो नहीं सकता सदा लंकेश ही होगा
करे जो दंभ जीवन में मिले पदभार से यारो...... वाह वाह
न जाने कैसी रस्में हैं उड़ेले प्यार हम जाते
मगर नफरत ही आती है सदा उस पार से यारो...बहुत खूब धामी सभी अश्आर संदेशपरक हैं... बधाई प्रेषित है
वैसे तो पूरी गजल पर आपको बधाई पर उन पंक्तिओं पर ढेरो दाद .......
हमें जल के ही मरना था जलाया नीर ने तन मन
खुशी दो पल रही केवल बचे अंगार से यारो
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भरत वो हो नहीं सकता सदा लंकेश ही होगा
करे जो दंभ जीवन में मिले पदभार से यारो
*****.......बहुत सुन्दर आ.धामी जी |
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नहीं शिव तो हुआ क्या फिर उपासक तो उसी के हम
गटक लें द्वेष का विष अब चलो संसार से यारो.....वहुत सुंदर अशआर. बधाई आदरणीय लक्ष्मण जी
चुभन मत याद रखना तुम मिली जो खार से यारो
रहे बस याद फूलों की मिले जो प्यार से यारो
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नहीं शिव तो हुआ क्या फिर उपासक तो उसी के हम
गटक लें द्वेष का विष अब चलो संसार से यारो--------------------बेहतरीन धामी जी i सादर i
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, सुन्दर रचना पर हार्दिक बधाई प्रेषित ! सादर
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