For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

भरत वो हो नहीं सकता - लक्ष्मण धामी ’मुसाफिर’

चुभन मत  याद  रखना  तुम मिली जो खार से यारो
रहे  बस  याद  फूलों  की  मिले   जो  प्यार  से  यारो

*****
नहीं शिव तो हुआ क्या फिर उपासक तो उसी के हम
गटक  लें  द्वेष  का  विष  अब चलो संसार से यारो

*****
न समझो  हक  तम्हें  तब तक  सुमारी दोस्तो में है
रखो गर  दुश्मनी  भी  तो  मिलो  अधिकार से यारो

*****
हमें जल  के  ही  मरना था जलाया नीर ने तन मन
खुशी  दो  पल   रही   केवल   बचे  अंगार  से  यारो

*****
भरत  वो  हो  नहीं  सकता  सदा  लंकेश  ही  होगा
करे  जो  दंभ   जीवन  में  मिले  पदभार  से  यारो

*****
रही  है  रीत  स्वागत  की  अगर  पाहुन  कोई  आए
तमस  अपमान   पाए  क्यों  हमारे  द्वार  से  यारो

*****
न  जाने  कैसी  रस्में  हैं  उड़ेले  प्यार  हम  जाते
मगर  नफरत  ही  आती है सदा उस पार से यारो

*****

मौलिक और अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ’मुसाफिर’

Views: 736

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 8, 2015 at 12:44pm

आ0 प्रबुद्ध जानो का ग़ज़ल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए कोटि कोटि धन्यवाद . आशा है स्नेह बनाए रखेंगे 

Comment by somesh kumar on March 3, 2015 at 11:26am

हर बार की तरह हर अशआर इतनी गहरी बात कहता है कि केवल कलम और रचनाकर के लिए साधुवाद ही प्रेषित किया जाए |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 3, 2015 at 8:40am

भरत  वो  हो  नहीं  सकता  सदा  लंकेश  ही  होगा
करे  जो  दंभ   जीवन  में  मिले  पदभार  से  यारो

न  जाने  कैसी  रस्में  हैं  उड़ेले  प्यार  हम  जाते
मगर  नफरत  ही  आती है सदा उस पार से यारो  --  लाजवाब शे र !! ग़ज़ल के लिये और इन अशआर के लिये हार्दिक बधाइयाँ ॥

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 2, 2015 at 11:50pm

नहीं शिव तो हुआ क्या फिर उपासक तो उसी के हम

गटक  लें  द्वेष  का  विष  अब चलो संसार से यारो

सुन्दर रचना!! बधाई आदरणीय!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 2, 2015 at 8:58pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी सर जी, बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है, हार्दिक बधाई निवेदित है 

सुमारी/को लेकर सशंकित हूँ. 

हमें जल  के  ही  मरना था जलाया नीर ने तन मन
खुशी  दो  पल   रही   केवल   बचे  अंगार  से  यारो......... इस शेर के मिसरा-ए-उला और सानी तक नहीं पहुँच पा रहा हूँ. 

ये अशआर बहुत बेहतरीन हुए है- 

नहीं शिव तो हुआ क्या फिर उपासक तो उसी के हम
गटक  लें  द्वेष  का  विष  अब चलो संसार से यारो

भरत  वो  हो  नहीं  सकता  सदा  लंकेश  ही  होगा
करे  जो  दंभ   जीवन  में  मिले  पदभार  से  यारो...... वाह वाह 

Comment by MAHIMA SHREE on March 2, 2015 at 7:18pm

न  जाने  कैसी  रस्में  हैं  उड़ेले  प्यार  हम  जाते
मगर  नफरत  ही  आती है सदा उस पार से यारो...बहुत खूब धामी सभी अश्आर संदेशपरक हैं... बधाई प्रेषित है

Comment by maharshi tripathi on March 2, 2015 at 5:18pm

वैसे तो पूरी गजल पर आपको बधाई पर उन पंक्तिओं पर ढेरो दाद .......

हमें जल  के  ही  मरना था जलाया नीर ने तन मन
खुशी  दो  पल   रही   केवल   बचे  अंगार  से  यारो

*****
भरत  वो  हो  नहीं  सकता  सदा  लंकेश  ही  होगा
करे  जो  दंभ   जीवन  में  मिले  पदभार  से  यारो

*****.......बहुत सुन्दर आ.धामी जी |

....

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 2, 2015 at 4:01pm

नहीं शिव तो हुआ क्या फिर उपासक तो उसी के हम
गटक  लें  द्वेष  का  विष  अब चलो संसार से यारो.....वहुत सुंदर अशआर. बधाई आदरणीय लक्ष्मण जी

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 2, 2015 at 2:42pm

चुभन मत  याद  रखना  तुम मिली जो खार से यारो
रहे  बस  याद  फूलों  की  मिले   जो  प्यार  से  यारो

*****
नहीं शिव तो हुआ क्या फिर उपासक तो उसी के हम
गटक  लें  द्वेष  का  विष  अब चलो संसार से यारो--------------------बेहतरीन धामी जी i सादर i

Comment by Hari Prakash Dubey on March 2, 2015 at 1:12pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, सुन्दर रचना पर हार्दिक बधाई प्रेषित ! सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service