22--22—22--22--22—2
मैं तो हूँ फ़कीर मैं झूमता चला हूँ
आदाब कर खुदा को नाचता चला हूँ
मस्त हूँ ख़ुशी मैं कहूं इसे ही जीना
गम के भँवर मैं मस्त तैरता चला हूँ
मौत क्या बला है मैंने इसे न जाना
जिंदगी मिली है बस भागता चला हूँ
बड़ी ख़ाक छानी पहले हुआ परेशां
नसीब को नाज़ तले रौंदता चला हूँ (नाज़= कोमलता)
शक हो किसी के दिल में तो आजमाले
इस देह को न’अश को सौंपता चला हूँ (न’अश = ताबूत)
© हरि प्रकाश दुबे
"मौलिक व अप्रकाशित”
Comment
आदरणीय गिरिराज सर ,उत्साहवर्धन के लिए बहुत- बहुत धन्यवाद आपका ! सादर
आदरणीय हरि प्रकाश भाई , बहुत बेहतरीन प्रयास हुआ है ग़ज़ल का , बढ़िया शे र कहे हैं , हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें ॥
आदरणीय श्याम मठपाल जी ,रचना पर आपकी उत्साहजनक प्रतिक्रिया से मन प्रसन्न है , आभार आपका ! सादर
भाई महर्षि त्रिपाठी जी ,बहुत बहुत धन्यवाद आपका ! सस्नेह
आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव सर ,आपके रचना पर दो शब्द भी एक उत्प्रेरक का काम करतें है , आभार आपका ! सादर !
आदरणीय डॉ विजय शंकर सर , सच मैं आप की प्रतिक्रिया उत्साहवर्धन करती है ,और सतत कुछ लिखने को प्रेरित करती है, प्रोत्साहन हेतु आपका हार्दिक आभार, ! सादर
भाई कृष्णा मिश्र जी ,रचना आपको पसंद आई ,आपका आभार ,तक्तीअ क्या बाला है ,अभी मैं भी समझ ही रहा हूँ , दरअसल गज़क विधा मुश्किल सी लग रही है अभी , थोडा थोडा प्रयास चल रहा है ! सादर
Aardarnya Dube Sb.,
Kya baat hai anand aa gaya. Dil ko choo gaee .. Bahut shukriya. Badhai.
अच्छी रचना पर बधाई आ.हरिप्रकाश जी |
हरि प्रकाश जी
अच्छा प्रयास है i सादर i
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