“ कवि सम्मलेन का भव्य आयोजन हो रहा था, सभागार श्रोताओं से खचाखच भरा हुआ था , देश के कई बड़े कवि मंच पर उपस्तिथ थे, मंच संचालक महोदय बार –बार निवेदन कर रहे थे की अपनी सर्वश्रेष्ठ रचना का पाठ करें, इसी श्रृंखला में उन्होंने कहा, अब मैं आमंत्रित करता हूँ, आप के ही शहर से आये हुए श्रधेय कवि विद्यालंकार जी का, तालियों से सभागार गूँज उठा !”
“तभी मंच संचालक महोदय ने उनके कान में कहा ‘सर कृपया १५ मिनट से ज्यादा समय मत लीजियेगा’ !”
“विद्यालंकार जी ने मंच पर आसीन कवियों एवम् श्रोताओं से कहा, आप सभी को सादर प्रणाम, अब मैं अपनी सर्वश्रेष्ठ रचना प्रस्तुत करने जा रहा हूँ, पर आप सभी से निवेदन है की कोई ताली नहीं बजाएगा ,ना ही कोई वाह-वाह करेगा, कृपया अपनी –अपनी आँखें बंद कर लें और कविता का आनंद लें !”
“ सभी ने अपनी आंखें बंद कर लीं, मौन छा गया, ठीक १५ मिनट तक मौन , फिर आवाज आयी, आशा है आपको कविता पसंद आई होगी ,थोडा जल्दी में हूँ ,आप सभी का आभार और इस तरह विद्यालंकार जी बिना कुछ कहे ही चल दिए !”
“सभा में सन्नाटा था, हर एक का मस्तिष्क सर्वश्रेष्ठ कविता का निष्कर्ष निकालने में जुटा हुआ था !”
© हरि प्रकाश दुबे
"मौलिक व अप्रकाशित”
Comment
हा हा हा , बहुत खूब आदरणीय शुभ्रांशु पाण्डेय जी ,इसी मौन मै ही कविता का जन्म होता है ,रचना पर आपकी उपस्थिति और प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार आपका ! सादर
आदरणीय हरि प्रकाश जी,
कवि महोदय से ज्यादा सम्मान के पात्र तो श्रोता हैं जो १५ मिनट तक शांत भाव से इस मौन को सुनते रहे.
सादर.
सोमेश भाई रचना पर आपके समर्थन एवं उत्साहजनक प्रतिक्रया के लिए हार्दिक आभार !
आदरणीय जितेन्द्र पस्टारिया साहब, रचना की सराहना करने के लिए आपका ह्रदय तल से आभार ! सादर
वाह! बहुत खूब,आदरणीय हरिप्रकाश जी. सच! एक नया दृष्टिकोण. बहुत-बहुत बधाई
आदरणीय डॉक्टर विजय शंकर सर बहुत सही विश्लेषण और सटीक अभिव्यक्ति दी है आपने ,आपकी स्नेहिल पतिक्रिया पर आपका दिल से शुक्रिया ,हार्दिक आभार ! सादर
वाह सुंदर सटीक और एक गहन संदेश से भरपूर लघुकथा |बधाई भाई जी
आदरणीय वंदना जी आपने रचना के मर्म को समझा ,हार्दिक आभार आपका ! सादर
सच है आदरणीय मौन से सुन्दर कविता और कोई नहीं
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