डरना हो तो बुरे कर्म से , डरना सीखो मतवाले !
उनको चैन कभी ना मिलता , जिनके होते मन काले !!
तोल सको तो पहले तोलो, बिन तोले कुछ मत बोलो !
मौन रहो जितना संभव हो , कम बोलो मीठा बोलो !!
खाना हो तो गम को खाओ, आंसू पीकर खुश होना !
गम सहने की चीज है बंधू , अपना गम न कहीं रोना !!
जला सको तो अहं जला दो , वरना अहं जला देगा !
हिरण्यकश्यप रावण के सम, तुमको भी मरवा देगा !!
दिखा सको तो राह दिखाओ , उसको जो पथ में भूला !
भगत सिंह ने हमें जगाया , खुद था फांसी पर झूला !!
मरना हो तो मरो देशहित, मरने से मत घबराना !
रोज रोज तिल तिल मरने से ,अच्छा इक दिन मर जाना !!
© हरि प्रकाश दुबे
"मौलिक व अप्रकाशित”
Comment
आदरणीय सौरभ पाण्डेय सर , रचना को स्वीकृति प्रदान करने एवं मान देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद ,रचना संशोधन के साथ पुनः प्रस्तुत है , सादर।
आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी आपका बहुत - बहुत धन्यवाद ! सादर
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी, रचना सुधार के साथ पुनः प्रस्तुत है ,आपकी प्रतिक्रिया से बहुत उत्साह मिला आपका बहुत - बहुत धन्यवाद ! सादर
आदरणीय मोहन सेठी सर , ह्रदय से धन्यवाद आपको ! सादर
प्रिय सोमेश भाई , आपकी सुन्दर प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आपका ! सस्नेह
प्रिय कृष्ण मिश्र जी, आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत धन्यवाद !
आदरणीय डॉक्टर गोपाल नारायण सर ,रचना सुधार के साथ पुनः प्रस्तुत है , कृपया एक नज़र और देख लीजियेगा ! आभार आपका ! सादर
आ० हरि प्रकाश जी
आपका परिश्रम आपकी रचना से ही मुखर है i भगत सिंह हमें जगाकर --इसमें कोई शब्द छूट गया है i देख लीजिये i सादर i
आदरणीय गिरिराज सर , बहुत बहुत आभार आपका ! सादर
आदरणीय हरि प्रकाश भाई , तीनो छंद लाजवाब हैं , आपको हार्दिक बधाई , छंद रचना के लिये ॥
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