“आज स्त्री दिवस है भाई, अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस, ८ मार्च है ना, समझे कुछ !”
“किस लिए मना रहें हैं भईया, और कबसे ?”
“ अरे यार एकदम बकलोल हो क्या ? अरे महिलाओं के लिए, उनकी क्षमता, सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक तरक़्क़ी दिलाने और उन महिलाओं को याद करने के लिए जिन्होंने महिलाओं के लिए प्रयास किए, अरे १९०९ से मना रहें हैं १०० साल से जयादा हो गए मनाते हुए, कुछ पढ़ते नहीं हो क्या ? !”
“तब भइया, रोज क्यों नहीं मनाते, देखिये न सभी स्त्रीयां सुबह से रात तक घर, परिवार,समाज का कितना काम करती हैं, पर एक सर्वे मैं बता रहा था की 87 प्रतिशत भारतीय स्त्रीयां ज़्यादातर समय तनाव में रहती हैं और 82 प्रतिशत के पास आराम करने के लिए वक़्त नहीं होता।“
“अरे इ सर्वे फर्वे सब बकवास है, अरे ब्रह्मा जी के बाद सबसे बड़ा स्थान नारी का है।“
“आप तो बड़े ज्ञानी हैं भईया, तब रात को दारु पीकर भउजाई को मारे क्यों थे ?”
© हरि प्रकाश दुबे
"मौलिक व अप्रकाशित”
Comment
बहुत अच्छी लघुकथा साझा की आपने,आदरणीय हरिप्रकाश जी. बधाई स्वीकारें
आदरणीय सौरभ सर ,रचना पर आपकी उपस्तिथि ने हर्षित किया ,आपका आभार ! सादर
भाई महर्षि त्रिपाठी जी ,रचना पर प्रोत्साहन के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद !
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर ,उत्साहवर्धन के लिए आपका आभार , सादर धन्यवाद !
सोमेश भाई ,बहुत बहुत धन्यवाद आपका ! सादर
आदरणीय डॉ विजय शंकर सर आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया हेतु आपका ह्रदय से आभारी हूँ ! सादर
आदरणीय खुर्शीद भाईसाहब, इस लघु कथा पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आपका आभार ! सादर
आप तो बड़े ज्ञानी हैं भईया, तब रात को दारु पीकर भउजाई को मारे क्यों थे ?”
आदरणीय हरिप्रकाश जी ,,,कहानी की अंतिम पंक्ति दोगलेपन के चीथड़े उधेड़ देती है |कामयाब प्रस्तुति है सर |सादर अभिनंदन |
आदरणीय श्याम मठपाल जी ,इस लघुकथा पर उत्साहवर्धन के लिए आपका बहुत बहुत आभार ! सादर
भाई कृष्णा मिश्र जी ,आभार आपका ! सस्नेह
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