दिन भर खाक छान कर वो वापस घर लौट रहा था | चारो तरफ अँधेरा , सुनसान गलियां और गूंजती हुई बूटों की आवाज़ एक अजीब सा माहौल पैदा कर रहीं थीं | आज भी निराशा हाथ लगी थी उसे , कई जगह उसे रिजेक्ट कर दिया गया था | गली में घुसते ही घर के सामने उसे भीड़ दिखाई पड़ी , उसका दिल जोर जोर से धड़कने लगा | लगभग दौड़ते हुए वो घर में घुसा , देखा एक किनारे माँ ज़मीन पर निढाल पड़ी थी |
उसने झकझोरते हुए पूछा " क्या हुआ माँ ", तभी पड़ोसी चाचा की आवाज़ आई " तुम्हारे भाई को पुलिस पकड़कर ले गयी है "|
उलटे पांव भागा वो थाने की तरफ , हाँफते हुए पहुंचा और अंदर पहुंचकर पूछने लगा कि उसका भाई कहाँ है | तभी कराहने की आवाज़ ने उसका ध्यान खींचा , भाई हवालात में एक किनारे लहूलुहान पड़ा हुआ था | बहुत गिड़गिड़ाया वो लेकिन दो टूक जवाब मिला कि कल सुबह ही उसके भाई की रिहाई हो सकती है | रात भर उसके भाई की कराह उसके दिल में नए नए जख्म पैदा करती रही |
सुबह उसने भाई को एक रिक्शे पर डाला और घर ले आया | माँ के हाँथ उसके घावों पर मरहम लगा रहे थे और उसके बहते आंसू बेटे के बदन पर लगे लहू को धो रहे थे | फिर एक कॉल आया उसके फोन पर लेकिन उसने उस नंबर को ब्लॉक कर दिया |
थोड़ी देर बाद उसके कदम फिर नौकरी की तलाश में निकल पड़े | उसने माँ की आँखों में एक आतंकवादी की पत्नी होने के दर्द को बहुत गहरे महसूस किया था और उसको एक बार फिर ऐसे दर्द के एहसास से गुजरने नहीं देना चाहता था |
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मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
बहुत बहुत आभार आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी..
बहुत उम्दा , बधाई इस लघुकथा के लिए .. |
बहुत बहुत आभार आदरणीय वीर मेहता जी | आपकी टिप्पणी पढ़ कर लगा कि मैं जो कहना चाहता था उसमे सफल हुआ |
बहुत सुन्दर कथा आदरणीय विनय कुमार सिंह जी ....एक आंतकवादी के परिवार पर उसकी छाया का पड़ता असर और उससके दर्द का अहसास देखते हुए वर्तमान में आने वाली परेशानियों के बावजूद बेटे का हौसल्ला बनाये रखना, सब कुछ बहुत सुन्दर से दर्शाया आपने.
बधाई स्वीकार करे!
बहुत बहुत आभार आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी..
आ० विनय जी
आप कथा का गठन जिस अदा से करते है वही उन्हें क्लिक करती है i आपकी प्रस्तुति को फिर प्रणाम i सादर i
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