बहुत लगाव था अपने ज़मीन के इस टुकड़े से रघू को , ये आखिरी जो था | पत्नी की बीमारी में एक एक करके सभी जमीनें गिरवी रखता गया था , इस उम्मीद में की जब वो ठीक हो जाएगी तो दोनों मियां बीबी मिलकर , पसीना बहाकर , छुड़ा लेंगें उन्हें | लेकिन जैसे जैसे ज़मीन के टुकड़े कम होते गए , पत्नी की सांसें भी कम होती गयीं |
आखिरी वक़्त में पत्नी ने वचन लिया था कि अब वो किसी भी सूरत में ज़मीन के इस आखिरी टुकड़े को नहीं बेचेगा | जिंदगी किसी तरह गुजर रही थी लेकिन उसकी ज़मीन पर एक उद्योगपति की नज़र पड़ गयी | वहाँ फैक्ट्री लगाने के लिए वो अगल बगल ज़मीनें खरीद रहा था | पर उसके लिए तो वो टुकड़ा अमानत थी किसी को दिए हुए वचन की लिहाज़ा उसने स्पष्ट इंकार कर दिया |
कल उसने पडोसी चाचा के घर टी वी में देखा कि इस नए कानून की बारे में चर्चा हो रही थी | उसने पूछा " क्या अब हमारी ज़मीनें हमारी मर्ज़ी के बिना भी छीनी जा सकती है चाचा "|
चाचा ने गहरी साँस लेते हुए कहा " हमारी जमीने बचती ही कब हैं रघू , लेकिन इस कानून ने तो बची खुची उम्मीदें भी तोड़ दी | शायद किसान के घर में पैदा होना ही हमारा गुनाह है , हम तो लोगों को अन्न देते हैं और लोग हैं कि अपना ही निवाला छीनने पर लगे हैं "|
रघू ख़ामोशी से उठा और अपने घर आ गया | रात बहुत देर तक वो बेचैनी से करवट बदलता रहा | सुबह लोगों ने देखा , रघू अपने खेत में निर्जीव पड़ा था |
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
बहुत बहुत आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी | आपने बिलकुल सच कहा..
बहुत बहुत आभार आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लडीवाला जी..
बहुत मार्मिक लघु कथा एक श्रमिक एक कृषक की आत्मा की आवाज है ये ,बहुत बहुत बधाई आपको विनय कुमार जी .
भूमि अधिग्रहण बिल को को लेकर रची सुंदर व्यंग करती लघु कथा के लिए बधाई
बहुत बहुत आभार आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी | यही तो सच्चाई है |
वाह विनय कुमार सिंह जी आपकी ये रचना यथार्थ का आईना है कि किस तरह अपने स्वार्थ के चलते गरीबों के अरमानों को उनके जीवन को कुचल दिया जाता है। बहुत बहुत बधाई आपको
बहुत बहुत आभार आदरणीय जवाहर लाल सिंह जी | ज्वलंत मुद्दा है ये इस समय..
वर्तमान भूमि अधिग्रहण बिल अचूक निशाना!
बहुत बहुत आभार आदरणीय जितेन्द्र पस्टारिया जी |
बहुत भावनात्मक प्रस्तुति. दिल को छू गई आपकी यह लघुकथा भी. बहुत-२ बधाई आदरणीय विनय जी
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