पल पल मुझ से रूठा है
हर पल यूँ तो झूठा है
सच और झूठ का ताना बाना
जीवन का रूप अनूठा है
इक पल में वो अपने दीखे
दो पल में कई सपने दीखे
कुछ पल में सब बिखर गये
यूँ साथ हमारा छूटा है
क्या पल पल मुझसे रूठा है
या जग सारा ये झूठा है !
मैं दीया हूँ तू बाती है
दुनिया क्यूँ तुझे जलाती है
मुझ पे भी कालिख आती है
प्यार के झोंके जब
आग बुझाने आते हैं
बेदर्द नहीं सह पाते हैं
हाथ बढ़ा ढक लेते हैं
आग को और भड़काते हैं
क्या जग सारा ये झूठा है ?
या ... पल पल मुझसे रूठा है !!
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय मोहन सेठीजी, आपके उत्साह और आपकी संलग्नता के प्रति सादर भाव हैं. रचना के लिए शुभकामनाएँ ..
सतत प्रयासरत रहें, आदरणीय.
शुभेच्छाएँ
आदरणीय Shyam Mathpal जी प्रोत्साहन के लिये धन्यवाद ...आभार
आदरणीय Dr. Vijai Shanker जी पसन्दगी के लिये आभार ...सादर
आदरणीय Hari Prakash Dubey जी बहुत बहुत धन्यवाद आपका ..सादर
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी आभार ...सादर
आ० मोहन सेठी जी
सुन्दर प्रयास . सादर .
आदरणीय मोहन सेठी जी, सुन्दर प्रस्तुति,
कुछ पल में सब बिखर गये
यूँ साथ हमारा छूटा है
क्या पल पल मुझसे रूठा है
या जग सारा ये झूठा है ! ,सुन्दर रचना ,बधाई प्रेषित ! सादर
बहुत सुन्दर प्रस्तुति आ.Mohan Sethi 'इंतज़ार' जी |
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