पद भार : २४ मात्रा
जीवन की सरिता नीर बहाने लगती है
मुझसे जब मेरे तीर छुड़ाने लगती है
बोझ उठा कर इन जखमों का जब थक जाती
सागर की लहर मुझे समझाने लगती है
छिप जाती हूँ मैं जब दुनिया से कोने में
वो मुझ को सहेली बन सताने लगती है
आंसू मेरे जब छिपने लगते आँखों में
वो मुझ पर जीभर प्यार लुटाने लगती है
भागती हूँ जीवन से मैं तोड़कर सब कुछ
अपने अधिकार मुझ पर जताने लगती है
ताबूत कफ़न का रास्ता जब चलती हूँ “निधि”
जिंदादिल जिंदगी मुझे बचाने लगती है
निधि
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
@मिथिलेश वामनकर जी आपका बहुत धन्यवाद्
सुन्दर रचना हेतु हार्दिक बधाई
आदरणीया निधि जी, अच्छी रचना हुई है, शीर्षक में 'एक गीतिका' पढ़ तनिक भ्रम में था कि शायद लेखिका 'गीतिका छंद' में रचना प्रस्तुत की हैं. बहरहाल इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें.
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online