मैं तो शब्द पिरो रही थी यूँ ही
सोच रही थी ख्यालों में खोकर
क्या ऐसे ही चलती है ज़िन्दगी
जैसे अनजाने बनती हैं कवितायें
झरने की तरह प्रवाह सी बहती
बस हर शब्द बरसता है बूँद सा
टपकता है मन के बादलों से कही
और जुड़ जुड़ कर बनता जाता है
एक मिसरा..एक शेर..एक मतला
कभी दर्द में डूबा हुआ सियाह लफ्ज़
कभी खुशी की चाशनी में डूबा हुआ.
कभी मिलन की आस में शरमाया हुआ
कभी विरह की तड़प में टूटता हुआ शब्द
एहसासों की चादर में लिपटकर कभी
बस कह जाता हैं अनकहे मन की बातें
वक्त के साथ यूँ ही बातो बातों में.
खोये हुए एक अरसा बीत जाता है
रेत के कणों सा हाथों से फिसलकर
दिल फिर एक रीता कागज़ रह जाता है
निधि
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आप सभी मित्रों का बहुत बहुत धन्यवाद् .. बस कोशिशें हैं
सुन्दर भावाभिव्यक्ति ...हार्दिक बधाई
Aadarniya Nidhi Ji,
Man ke bhawon se hi kavita banti hai. Aapne ne bhawon ko piroya hai. Bahut sundar . Dheron Badhai.
रचना में बहुत ही सुंदर भाव ,उभर कर आयें हैं. प्रस्तुति पर बधाई , आदरणीया निधि जी
आदरणीया निधि जी ,सुन्दर भावों से सुसज्जित इस रचना पर बधाई आपको ! सादर
कभी दर्द में डूबा हुआ सियाह लफ्ज़
कभी खुशी की चाशनी में डूबा हुआ.
कभी मिलन की आस में शरमाया हुआ
कभी विरह की तड़प में टूटता हुआ शब्द
आदरणीया निधि जी ,सुन्दर भावाभिव्यक्ति है |सादर अभिनन्दन |
क्या ऐसे ही चलती है ज़िन्दगी
जैसे अनजाने बनती हैं कवितायें
aapke isi sval me jwavb bhi hai nidhi ji ,sunder bhavrnjit kvita,hardik bdhai
बहुत सुन्दर ,,आ. निधि जी आपको हार्दिक बधाई |
वाहहहहहह निधि जी
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