नयी ग़ज़ल
बह्र - २१२२ २१२२ २१२
अजनबी हमसे सदा रहता नहीं
चाहता है फिर गिला रहता नहीं
वो जफ़ा कर क्यों खफा तुमसे हुआ
बा वफ़ा साथी जुदा रहता नहीं
आईना टूटा तभी तो रो दिये
नूर आँखों का बुझा रहता नहीं
दोस्त तेरा प्यार मुझ पे इस कदर
टूटकर भी वो ख़फा रहता नहीं
तू मना ले चाह कर भी ऐ “निधी”
नाखुशी से वो ख़ुदा रहता नहीं
मौलिक और अप्रकाशित
Added by Nidhi Agrawal on November 30, 2016 at 11:00am — 4 Comments
जोश-ए-वस्ल में हुजूर को, उम्र का तकाजा याद नहीं
तड़पता जिस्म, भरी आँखे, कैसे हुआ कलेजा याद नहीं
भूल गया था वहशी, थी फकत शरारत की इक रात
हया और ज़िल्लत-ए-ज़माना, कब उठा जनाजा याद नहीं
होठों पे हंसी थी उनके और आँखों में चमक झलकी थी
दफ़न ही था दर्दे-दिल फिर, कैसे हुआ अंदाजा याद नहीं
राह बजी जब सीटियाँ, कान बंद और नज़र झुकी रहीं
जुनूने इश्क में जालिम ने, कब कसा शिकंजा याद नहीं
ज़माना क्यों नहीं देखता, मन की…
ContinueAdded by Nidhi Agrawal on December 16, 2015 at 2:44pm — 5 Comments
जिंदगी कुछ खाली खाली सी लगती है
दुनिया अचानक सुनसान सी लगती है
खुशियों में आज इक तड़प सी क्यों है
दिल दर्द के बिना परेशान सा क्यों है
तुझ से कुछ भी तो नहीं माँगा ऐ खुदा
फिर आसपास हंसी की फुहारे क्यों है
चाहत नहीं हँसते नजारों की अल्लाह
फिर सूनी सी बगिया में बहारें क्यों है
नशा जो मांगती हूँ ग़म-ए-मुहब्बत का
ऐ मेरे खुदा, फिर आज आंख में आंसू
और इन जख्मों में मवाद कम क्यों है
जिन्हें पाने की आस में तड़पे थे रात दिन
वो दूरियां…
Added by Nidhi Agrawal on August 24, 2015 at 1:00pm — 8 Comments
पीहर के आँगन छूटी उस मिट्टी का रंग पीला था
गाँव से संदेसा लायी उस चिट्ठी का रंग पीला था
जनक ने विदा किया दहेज़ का हर सामान देकर
पीठ पर निशान किये उस पट्टी का रंग पीला था
बहुत मन से बनाया साग नमक जियादा हो गया
थाली से जो फेंक मारी उस लिट्टी का रंग पीला था
गाँव बाहर पुल पर मजदूरी को भेजा घर वालों ने
तसले भरके जो ढोया उस गिट्टी का रंग पीला था
वंश बेल आगे करने को उनको इक बेटा जरूरी था
बेटी को मिला…
ContinueAdded by Nidhi Agrawal on July 22, 2015 at 11:30am — 8 Comments
212 212 212 212
छोड़ दूँ अब कुंवारा नगर मैं पिया
काट लूँ सँग तुम्हारे सफर मैं पिया
मन न माने मगर क्या बताऊँ तुम्हें
साथ दोगे चलूंगी सहर मैं पिया
पंखुड़ी खिल गयी राग पाकर कहीं
बेज़ुबां अब न खोलूं अधर मैं पिया
मौत का गम नहीं साथ तुम हो मेरे
मुस्करा के पियुंगी जहर मैं पिया
अब तुम्हारे सिवा कुछ न चाहूंगी मैं
दिल मिलाओ मिलाऊं नज़र मैं पिया
दूर से देखकर आज रुकना…
ContinueAdded by Nidhi Agrawal on June 25, 2015 at 12:01pm — 6 Comments
बारिश की पहली पहली फुहार
और सिग्नल का ये इंतज़ार
नजरें बरबस विंड स्क्रीन पर अटक गयीं
बारिश की बूँदें ढल रही थीं
एक एक कर बड़ी कठिनाई से बूँद सरकती
धीरे से दूसरी बूँद से जा मिलती
फिर थोड़ी सी रफ़्तार बढती
दोनों मिलकर तीसरी बूँद से मिलती
और फिर तेज़ रफ़्तार से ढुलक जाती
सोचें सरकने लगीं यूँ ही
कारवां भी ऐसे ही बनता है
किसी नए इंसान से मिलना
काफी कठिन लगता है पहली बार
दो मिलकर तीसरे से मिलने…
ContinueAdded by Nidhi Agrawal on June 16, 2015 at 12:30pm — 11 Comments
टूट टूट के अपना दिल कुछ जाली सा हो गया
अंतरमन का वो कोना कुछ खाली सा हो गया
वस्ल की निगाहें हो गयी, दोस्ती की आड़ में
नारी होकर जीना अब कुछ गाली सा हो गया
नजरों में घुली शराब, चाचा मामा भाई की
आँखों में हर रिश्ता, अब कुछ साली सा हो गया
गर्दिश में लिपटी कनीज़, सहारे की तलाश में
मन अकबर शज़र का भी, कुछ डाली सा हो गया
शोर में दब के रह गयी आबरू की आवाज
चीखती ललना का स्वर, बस ताली सा हो…
ContinueAdded by Nidhi Agrawal on June 9, 2015 at 3:30pm — 13 Comments
पार्टियों की रेस तो देखो कितनी है रफ़्तार
सत्ता में जब भी आ जाती, होता हाहाकार
चुनाव जीतकर आ जाए तो कितना अहंकार
भ्रष्टाचार का सभी तरफ फ़ैल गया अंधकार
काम करे सरकारी अफसर, कर रहे उपकार
रिश्वत खाकर फूले हैं और हो गए मक्कार
ईमानदारी पर आजकल मिलती है फटकार
बिक गए हैं बेईमानी में हम सब के संस्कार
नेता भाई किसान को जाकर दे गए ललकार
दाम दे देंगे जमीन के बंद करो फुफकार
कदम कदम पे रह…
ContinueAdded by Nidhi Agrawal on April 23, 2015 at 6:15pm — 8 Comments
कौन हो ? रो क्यों रही हो? - गाँव के बाहर बैठी उस स्त्री से बाल्या ने पूछा
"शहर शहर घूम आई ..धुवें से काली काली हो गयी.. मैं बरसना चाहती हूँ लेकिन सब ने बहाना कर के भगा दिया ..कहाँ जाऊं" उसने रोते रोते कहा
अरे माई . कितना इंतज़ार करवाया .. पिछले दो साल से तुम नहीं आयीं.. उस साल बापू ने रो रो कर इसी पेड़ से लटक कर जान दे दी .. पिछले साल माँ ने कर्ज लेकर बीज बोये और फिर भूखी ही मर गयी... तू यहाँ बरस खेतों पे... अबकी फसल मैं दोनों का श्राद्ध करूँगा…
ContinueAdded by Nidhi Agrawal on April 14, 2015 at 3:30pm — 6 Comments
212 212 212 212
छोड़ दूँ अब कुंवारा नगर मैं पिया
काट लूँ सँग तुम्हारे सफर मैं पिया
मन न माने मगर क्या बताऊँ तुम्हें
साथ दोगे चलूंगी सहर मैं पिया
पंखुड़ी खिल गयी राग पाकर कहीं
बेज़ुबां अब न खोलूं अधर मैं पिया
मौत का गम नहीं साथ तुम हो मेरे
मुस्करा के पिउंगी जहर मैं पिया
अब तुम्हारे सिवा कुछ न चाहूंगी मैं
दिल मिलाओ मिलाऊं नज़र मैं पिया
दूर से देखकर आज रुकना…
ContinueAdded by Nidhi Agrawal on April 14, 2015 at 2:49pm — 8 Comments
"ए रांड....." - परीक्षा देकर निकलते ही ऊँची आवाज में सीसा घोलती गाली वर्षा के कानों में पड़ी.. मुड़कर देखा तो संतोष सिगरेट के छल्ले उड़ाते हुवे अपने मित्रों के साथ उसकी तरफ देख कर ठहाके लगा रहा था. वही जिसके प्यार को पिछले साल ठुकरा दिया था.. अपमान के एहसास से आँखों में आंसू आ गए .. पर वह चुपचाप वहां से चल दी.. क्या कहती ?
घर पहुँच कर देखा .. मुन्नी सो रही थी
"वर्षा कल का पेपर कैसे देगी.. कोर्ट की तारीख आगे बढ़वा लेती" माँ रसोई से आते आते बोली
"माँ…
ContinueAdded by Nidhi Agrawal on April 10, 2015 at 9:30am — 8 Comments
बिटिया तू थोड़ी छोटी हो जा
नकचढ़ी थोड़ी सरफिरी हो जा
अब किसी बात की फरमाइश नहीं होती
गालों पे चुम्बन की बारिश नहीं होती
नयी नयी ड्रेस की सिफारिश नहीं होती
नयी डिश के लिए मस्कापालिश नहीं होती
मूवी जाने के लिए साजिश नहीं होती
माँ को पटाने की अब कोशिश नहीं होती
थोड़ी सी फिर से लहरी हो जा
नकचढ़ी थोड़ी सरफिरी हो जा
बिटिया तू थोड़ी छोटी हो जा
मीटिंग के बहाने ऑफिस जल्दी जाना
रात को देर से आना फिर…
ContinueAdded by Nidhi Agrawal on April 8, 2015 at 1:04pm — 14 Comments
चंद लफ़्ज़ों के लिये दूरियां बढती चली गयी
डोर बनी थी कड़वाहट की बस कसती चली गयी
रंग भरे थे ख्वाब उसके, मंजिल तलक था जाना
राह उसकी बस लाल रंग में बदलती चली गयी
खुशियाँ ही चाहती थी वो अपनों की आँखों में
कालिख क्यों उनके चेहरे बिखरती चली गयी
जीना ही तो चाहती थीं न वो दिलों में बसकर
बेटियाँ तो तस्वीर बनकर लटकती चली गयी
चोटियों पर पहुँचने का अरमान रखा उसने
इच्छायें दायरों में ही "निधि" बंधती चली…
Added by Nidhi Agrawal on April 7, 2015 at 1:30pm — 9 Comments
२१२ २१२ २१२ २१२
ज़िंदगी किस कदर इक सफ़र बन गयी
अनलिखी ये कहानी खबर बन गयी
बात छोटी सही सबके मुह जो चढ़ी
बात खींची गयी फिर रबर बन गयी
राह चलते हुये बज उठी सीटियाँ
सादगी कामिनी की ज़हर बन गयी
बेवफाई मिली आग दिल में जली
बेअदब आज मेरी नज़र बन गयी
चाह हमने रखी रोशनी की अगर
आरज़ू ही हमारी कबर बन गयी
ईश्क की इक नज़र कैद में जो मिली
हथकड़ी टूटकर इक तबर बन…
ContinueAdded by Nidhi Agrawal on March 23, 2015 at 1:00pm — 14 Comments
212 212 212 212
आज दिल की कहानी छुपा ले गयी
आँख से नींद, यादें चुरा ले गयी
कैस खुद को भुलाए कोई तू बता
फिक्र तेरी ज़हन को बहा ले गयी
तू नहीं जिंदगी में ये ग़म है मुझे
दूरियां दर्द का भी मजा ले गयी
शीत की ये लहर टीस बन कर उठी
हाय दिल की अगन को बढ़ा ले गयी
हसरतें अब ये दिल से जुदा हो न हो
मौत की ये रवानी खुदा ले गयी
वक्त की चाल का क्या पता ऐ “निधी”
आस जीवन…
ContinueAdded by Nidhi Agrawal on March 20, 2015 at 3:30pm — 10 Comments
212 212 212 212
कैसे कमसिन उमरिया जवां हो गयी
दिल से दिल की मुहोबत बयां हो गयी
ख्वाब आँखों से अब मत चुराना कभी
नींद सपनों पे जब मेहरबां हो गयी
फूल बन के खिली गुलबदन ये कली
आरजू फिर महक की जवां हो गयी
प्यार की बात हमने छुपाई बहुत
लोग सुनते रहे दासतां हो गयी
होंठ जबसे मिले होंठ ही सिल गए
कैसे चंचल जुबां बेजुबां हो गयी
दोस्त आगोश में आशना ऐ “निधी”
आज मन की…
ContinueAdded by Nidhi Agrawal on March 18, 2015 at 1:30pm — 32 Comments
तुझसे मिलन के इंतज़ार में
बसाया था बलम
तेरी छवि को यादों में
तेरी प्रीत को ख्वाबो में
करवटों को बाँहों में
और
सिलवटों को रातों में
तुझको पाने की प्यास में
सीखा था सनम
गीतों को गाना
नृत्य को जीना
शराब को पीना
और
ज़ख्मों को सीना
तुझसे मिलन की आस पिया
और सजाया था
कजरा आँखों में
गजरा बालों में
नखरा गालों पे
और
मदिरा होठों…
ContinueAdded by Nidhi Agrawal on March 17, 2015 at 11:42am — 11 Comments
पद भार : २४ मात्रा
जीवन की सरिता नीर बहाने लगती है
मुझसे जब मेरे तीर छुड़ाने लगती है
बोझ उठा कर इन जखमों का जब थक जाती
सागर की लहर मुझे समझाने लगती है
छिप जाती हूँ मैं जब दुनिया से कोने में
वो मुझ को सहेली बन सताने लगती है
आंसू मेरे जब छिपने लगते आँखों में
वो मुझ पर जीभर प्यार लुटाने लगती है
भागती हूँ जीवन से मैं तोड़कर सब कुछ
अपने अधिकार मुझ पर जताने लगती…
ContinueAdded by Nidhi Agrawal on March 16, 2015 at 7:30pm — 13 Comments
मैं तो शब्द पिरो रही थी यूँ ही
सोच रही थी ख्यालों में खोकर
क्या ऐसे ही चलती है ज़िन्दगी
जैसे अनजाने बनती हैं कवितायें
झरने की तरह प्रवाह सी बहती
बस हर शब्द बरसता है बूँद सा
टपकता है मन के बादलों से कही
और जुड़ जुड़ कर बनता जाता है
एक मिसरा..एक शेर..एक मतला
कभी दर्द में डूबा हुआ सियाह लफ्ज़
कभी खुशी की चाशनी में डूबा हुआ.
कभी मिलन की आस में शरमाया हुआ
कभी विरह की तड़प में टूटता हुआ शब्द
एहसासों की चादर में…
ContinueAdded by Nidhi Agrawal on March 13, 2015 at 9:30am — 10 Comments
जिंदगी की कहानी सुनाता रहा
दर्द दिल के सभी मै छिपाता रहा
प्यार था या नहीं ये पता ही नहीं
बात क्या थी जिगर में दबाता रहा
जज़्ब होते रहे अश्क भीगे अधर
मुसकुरा कर निगाहें चुराता रहा
तोड़कर वो चली पारसा दिल मेरा
आइना कांच…
ContinueAdded by Nidhi Agrawal on March 12, 2015 at 1:00pm — 22 Comments
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