"ए रांड....." - परीक्षा देकर निकलते ही ऊँची आवाज में सीसा घोलती गाली वर्षा के कानों में पड़ी.. मुड़कर देखा तो संतोष सिगरेट के छल्ले उड़ाते हुवे अपने मित्रों के साथ उसकी तरफ देख कर ठहाके लगा रहा था. वही जिसके प्यार को पिछले साल ठुकरा दिया था.. अपमान के एहसास से आँखों में आंसू आ गए .. पर वह चुपचाप वहां से चल दी.. क्या कहती ?
घर पहुँच कर देखा .. मुन्नी सो रही थी
"वर्षा कल का पेपर कैसे देगी.. कोर्ट की तारीख आगे बढ़वा लेती" माँ रसोई से आते आते बोली
"माँ कॉलेज की परीक्षा तो अगले साल फिर आएगी .. पहले उन दरिंदों को सजा दिलवाकर जिंदगी की एक परीक्षा तो पास करूँ"
कहते हुवे मुन्नी को दूध पिलाने लगी ..थी तो दरिंदों में से ही किसी एक का बेटी ... पर उसका क्या कसूर था.....बस प्यार से मुन्नी के बाल सहलाती रही
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
लघुकथा कहने का सद्प्रयास हुआ है आ० निधि अग्रवाल जी। स्मरण रहे कि पंच अथवा चोट को लघुकथा की जान माना जाता है। इस पंच का अभाव है अभी आपकी लघुकथा में। इसको दोबारा पढ़ें और काट-छील कर शार्प करने का प्रयास करें।
आपका t बहुत धन्यवाद आदरणीय राजेश कुमारी जी
आज इसी हिम्मत और आत्मविश्वास की जरूरत है हर लड़की को ..बहुत अच्छी लघु कथा लिखी निधि जी हार्दिक बधाई
आदरणीय जीतेन्द्र जी, कांता जी, शिज्जू जी एवं जवाहर लाल जी.. रचना पर आपकी उपस्थिति और प्रेरणा दाई प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत धन्यवाद .. ये मेरी पहली लघुकथा की कोशिश थी .. शायद उतनी सही नहीं बनी इसलिए सभी गुणीजनों और गुरु मंच की नजर नहीं पढ़ी .. मुझे लगता है और कसाव की जरुरत है .. आशा है मेरी अगली रचना मंच को और पसंद आये ..
सामयिक विषय पर अच्छी लघुकथा साझा की, आदरणीया निधि जी. बधाई
बेहतरीन संदेश देती रचना है हमें किसी भी हाल में हिम्मत नहींं छोड़ना चाहिये
"माँ कॉलेज की परीक्षा तो अगले साल फिर आएगी .. पहले उन दरिंदों को सजा दिलवाकर जिंदगी की एक परीक्षा तो पास करूँ" - यही है स्त्री की असली परीक्षा जिससे उसे हर हाल में निपटाना होता है बेहतरीन अंदाज में प्रस्तुत लघुकथा अपनी मकसद में कामयाब रही है सादर
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