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बिटिया थोड़ी छोटी हो जा

बिटिया तू थोड़ी छोटी हो जा

नकचढ़ी थोड़ी सरफिरी हो जा

 

अब किसी बात की फरमाइश नहीं होती

गालों पे चुम्बन की बारिश नहीं होती

नयी नयी ड्रेस की सिफारिश नहीं होती

नयी डिश के लिए मस्कापालिश नहीं होती

मूवी जाने के लिए साजिश नहीं होती

माँ को पटाने की अब कोशिश नहीं होती

 

थोड़ी सी फिर से लहरी हो जा

नकचढ़ी थोड़ी सरफिरी हो जा

बिटिया तू थोड़ी छोटी हो जा

 

मीटिंग के बहाने ऑफिस जल्दी जाना

रात को देर से आना फिर जल्दी सोना  

मन के खालीपन को हंसी में उडाना

बढती हुई उमर को मेकअप में छिपाना

पापा की यादों को तकिये में बहाना

नहीं अच्छा लगता तेरा यूँ बड़ा होना

 

इक बार फिर छोटी परी हो जा

नकचढ़ी थोड़ी सरफिरी हो जा

बिटिया तू थोड़ी छोटी हो जा 

निधि 

मौलिक और अप्रकाशित 

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Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 10, 2015 at 7:57pm

एक जिम्मेदार बिटिया की संवेदना को आपने बखूबी शब्दों में बाँधा है! आदरणीया निधि जी 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 10, 2015 at 7:45pm

सुंदर हृदयस्पर्शी पंक्तियाँ. बधाई आदरणीया निधि जी

Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 10, 2015 at 4:11pm

आदरणीया निधि जी  इस सुंदर रचना के लिए हार्दिक बधाई सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 9, 2015 at 7:37pm

बहुत सुंदर रचना है आदरणीया निधि जी बहुत बहुत बधाई

Comment by Nidhi Agrawal on April 9, 2015 at 6:49pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी .. आपकी रचना पर उपस्थिती और स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए आभार 

मेरी रचना शायद अपने भावों को सही रूप में नहीं प्रस्तुत कर पायी 

Comment by Nidhi Agrawal on April 9, 2015 at 6:45pm

आदरणीय गिरिराज जी आपका बहुत बहुत आभार .. मेरी कविता शायद भावों को एकदम सही तरीके से पेश नहीं कर पायी .. मैं उस माँ का दर्द जताना चाहती थी जिसकी बेटी पापा की मृत्यु के बाद परिवार की जिम्मेदारियों में सब कुछ भूल गयी ..और मजबूरी कहो या जरुरत ..अविवाहित खोखली ज़िन्दगी में न माँ खुशियाँ भर पायी न उसका दर्द बाँट पायी 

Comment by Nidhi Agrawal on April 9, 2015 at 6:41pm

आदरणीय डॉ. विजय जी आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by Nidhi Agrawal on April 9, 2015 at 6:38pm

आदरणीय @मिथिलेश वामनकर जी बहुत बहुत धन्यवाद आपका 

Comment by maharshi tripathi on April 9, 2015 at 5:21pm

सुन्दर ,,,कविता पर ,,,ढेरो बधाई आपको आ. Nidhi Agrawal  जी |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 9, 2015 at 11:30am

आदरणीया , बच्चों की भोली शरारतों की ख़्वाहिश सच मे कभी उठ जाती है, खास तौर पे तब , जब गंभीरता आ जाती है बच्चों मे  ! बहुत सुन्दर । बधाई आदरणीया ।

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