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चंद लफ़्ज़ों के लिये दूरियां बढती चली गयी

चंद लफ़्ज़ों के लिये दूरियां बढती चली गयी 
डोर बनी थी कड़वाहट की बस कसती चली गयी

रंग भरे थे ख्वाब उसके, मंजिल तलक था जाना 
राह उसकी बस लाल रंग में बदलती चली गयी

खुशियाँ ही चाहती थी वो अपनों की आँखों में 
कालिख क्यों उनके चेहरे बिखरती चली गयी

जीना ही तो चाहती थीं न वो दिलों में बसकर 
बेटियाँ तो तस्वीर बनकर लटकती चली गयी

चोटियों पर पहुँचने का अरमान रखा उसने 
इच्छायें दायरों में ही "निधि" बंधती चली गयी

निधि

मौलिक और अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Nidhi Agrawal on April 10, 2015 at 4:17pm

Dhanyawad जवाहर जी.. आपने सही कहा राहें कठिन हैं .. और आगे बढ़ना होगा .. 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 9, 2015 at 10:21pm

आदरणीया आपने एक महिला की जज्बात को रखने की कोशिश की हैं  ... पर मैं कहूँगा कि रास्ते कठिन हैं, पर बिना कांटे के गुलाब तो दिखा - आज ही सुभाष चन्दर ने महिलाओं की सभा में संबोधित करते हुए कहा था ... सादर!

Comment by Nidhi Agrawal on April 9, 2015 at 7:23pm

डॉ विजय जी सच कहा .. रचना अधूरी है अभी .. 

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 9, 2015 at 7:15pm
चोटियों पर पहुँचने का अरमान रखा उसने
इच्छायें "निधि" दायरों में ही सिमटती चली गयीं
थोड़ा सा बदला है, शायद अच्छा लगे। आप संभवत: कहना बहुत कुछ चाहतीं हैं , पर कहीं रुक गयीं हैं, कुछ सोचने के लिए छोड़ रही है आपकी यह रचना।
बधाई , इस प्रस्तुति पर आदरणीय सुश्री निधि अग्रवाल जी, सादर।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 9, 2015 at 6:54pm

पिछले दिनों आपकी एक प्रस्तुति आयी थी. अच्छा लगा था. सुधीजनों का उत्साहवर्द्धन प्रभावी हो. द्विपदी को ग़ज़ल विधा का स्वरूप दें एवं तदनुरूप प्रयास करें.
विश्वास है, आपका अभ्यास सतत हो चला होगा.
शुभेच्छाएँ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 9, 2015 at 3:09pm

आदरणीया निधि जी , सुन्दर भाव अभिव्यक्ति हुई है , हार्दिक बधाइयाँ ॥

Comment by Nidhi Agrawal on April 8, 2015 at 2:38pm

आदरणीय शिज्जू जी .. सुनील जी आभार आपका 

Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on April 8, 2015 at 12:06pm
सुन्दर भावनाओं की अभिव्यक्ति मोहक लगी।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 8, 2015 at 9:59am

आदरणीय निधि जी भावभिव्यक्ति बहुत अच्छी है बधाई आपको

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