कौन हो ? रो क्यों रही हो? - गाँव के बाहर बैठी उस स्त्री से बाल्या ने पूछा
"शहर शहर घूम आई ..धुवें से काली काली हो गयी.. मैं बरसना चाहती हूँ लेकिन सब ने बहाना कर के भगा दिया ..कहाँ जाऊं" उसने रोते रोते कहा
अरे माई . कितना इंतज़ार करवाया .. पिछले दो साल से तुम नहीं आयीं.. उस साल बापू ने रो रो कर इसी पेड़ से लटक कर जान दे दी .. पिछले साल माँ ने कर्ज लेकर बीज बोये और फिर भूखी ही मर गयी... तू यहाँ बरस खेतों पे... अबकी फसल मैं दोनों का श्राद्ध करूँगा सच्ची
और बारिश उमड़ घुमड़ कर बरस ली
निधि
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
समसामयिक विषय पर प्रभावपूर्ण लघुकथा के लिए बधाई
सापेक्ष विषय पर संवाद शैली में रचनाकर्म के लिए अछूता व्यवहार ..
बहुत खूब !
बधाइयाँ और शुभकामनाएँ
आदरणीया वंदना जी की बातों से सहमत ....पिछले साल कर्ज लेकर बीज बोये और भूखी ही मर गयी...देखए यहाँ कुछ छूट रहा है ...फिर से प्रयास करिए सुन्दर लघु कथा निकल कर आएगी ! सादर
एक बहुत अच्छे सामयिक विषय पर आपने लिखा है निधि जी ,थोड़े से सुधार से बेहतर होगी अपेक्षा है
विषय अच्छा चुना है आपने पर कुछ शब्द छूटे हुए से लग रहे हैं एक बार फिर से देखिएगा आदरणीया
किसानो की हालत पर सुन्दर लघु कथा.
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