पार्टियों की रेस तो देखो कितनी है रफ़्तार
सत्ता में जब भी आ जाती, होता हाहाकार
चुनाव जीतकर आ जाए तो कितना अहंकार
भ्रष्टाचार का सभी तरफ फ़ैल गया अंधकार
काम करे सरकारी अफसर, कर रहे उपकार
रिश्वत खाकर फूले हैं और हो गए मक्कार
ईमानदारी पर आजकल मिलती है फटकार
बिक गए हैं बेईमानी में हम सब के संस्कार
नेता भाई किसान को जाकर दे गए ललकार
दाम दे देंगे जमीन के बंद करो फुफकार
कदम कदम पे रह गया है, अब तो बस इनकार
जनता की सूखी रोटी, डकार रही सरकार
निधि
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
सुन्दर रचना पर बधाई आ० निधि जी!
सुंदर रचना है आदरणीया निधिजी बधाई आपको
सटीक व्यंग ...सुंदर प्रस्तुति के लिये बधाई ...सादर
वाह बहुत खूब।
अच्छी प्रस्तुति, तनिक प्रयत्न हो तो ये द्विपदियाँ दोहों की शक्ल ले सकती हैं, बधाई आदरणीय निधि जी इस अभिव्यक्ति पर.
सच्चाई को बयां करती ,सुंदर रचना आदरणीया निधि जी. हार्दिक बधाई
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