बारिश की पहली पहली फुहार
और सिग्नल का ये इंतज़ार
नजरें बरबस विंड स्क्रीन पर अटक गयीं
बारिश की बूँदें ढल रही थीं
एक एक कर बड़ी कठिनाई से बूँद सरकती
धीरे से दूसरी बूँद से जा मिलती
फिर थोड़ी सी रफ़्तार बढती
दोनों मिलकर तीसरी बूँद से मिलती
और फिर तेज़ रफ़्तार से ढुलक जाती
सोचें सरकने लगीं यूँ ही
कारवां भी ऐसे ही बनता है
किसी नए इंसान से मिलना
काफी कठिन लगता है पहली बार
दो मिलकर तीसरे से मिलने की
फिर हिचक कम हो जाती है
धीरे धीरे भीड़ बन जाती है
और बनता कारवां आसानी से
फिर लगा ज़िन्दगी भी तो ऐसी ही है
पहली कठिनाई बहुत मुश्किल लगती है
बहुत संघर्ष होता है मानसिक -शारीरिक
दूसरी मुश्किल फिर आसान लगती है
और धीरे धीरे संघर्ष की आदत हो जाती है
जीवन की सच्चाई भी आदत डाल देती है
पहला धोखा बहुत रुलाता है तड़पाता है
दुसरे धोखे में हम समझदार होते हैं
और फिर दर्द की आदत हो जाती है
कितना कुछ सिखा गयी ये बूँदें बारिश की
मुझे ज़िन्दगी से मिला गयी ये बूँदें बारिश की
निधि
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
आदरणीया निधिजी, आपकी इस रचना की गहराई प्रभावित करती है. बारिश की बूँदों का ग्लास-पैन पर लम्बवत अधोगति के साथ सरकने को कई भावनाओं से आपने जोड़ कर देखा है. सही मनोदशा की वैचारिकता अधोगामी प्रतीत होने लगे तो व्यक्ति को सचेत हो जाना चाहिये.
हार्दिक शुभकामनाएँ
भावपूर्ण सुंन्दर प्रस्तुति के लिये बधाई, आ0 निधी जी.
आप सभी मित्रों का बहुत बहुत धन्यवाद
वाह वाह! आपकी इस रचना ने मन मोह लिया..बहुत बेहतरीन कविता! हार्दिक बधाई व् शुभकामनाए आ. निधि जी!
लाजवाब खूब सुन्दर रचना
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