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बारिश की पहली बूँदें (मुक्त कविता)

बारिश की पहली पहली फुहार

और सिग्नल का ये इंतज़ार

नजरें बरबस विंड स्क्रीन पर अटक गयीं

बारिश की बूँदें ढल रही थीं

एक एक कर बड़ी कठिनाई से बूँद सरकती

धीरे से दूसरी बूँद से जा मिलती

फिर थोड़ी सी रफ़्तार बढती

दोनों मिलकर तीसरी बूँद से मिलती

और फिर तेज़ रफ़्तार से ढुलक जाती

 

सोचें सरकने लगीं यूँ ही

कारवां भी ऐसे ही बनता है

किसी नए इंसान से मिलना

काफी कठिन लगता है पहली बार

दो मिलकर तीसरे से मिलने की

फिर हिचक कम हो जाती है

धीरे धीरे भीड़ बन जाती है

और बनता कारवां आसानी से

 

फिर लगा ज़िन्दगी भी तो ऐसी ही है

पहली कठिनाई बहुत मुश्किल लगती है

बहुत संघर्ष होता है मानसिक -शारीरिक

दूसरी मुश्किल फिर आसान लगती है

और धीरे धीरे संघर्ष की आदत हो जाती है

 

जीवन की सच्चाई भी आदत डाल देती है

पहला धोखा बहुत रुलाता है तड़पाता है

दुसरे धोखे में हम समझदार होते हैं

और फिर दर्द की आदत हो जाती है

 

कितना कुछ सिखा गयी ये बूँदें बारिश की

मुझे ज़िन्दगी से मिला गयी ये बूँदें बारिश की 

निधि 

मौलिक और अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Saurabh Pandey on July 6, 2015 at 12:41am

आदरणीया निधिजी, आपकी इस रचना की गहराई प्रभावित करती है. बारिश की बूँदों का ग्लास-पैन पर लम्बवत अधोगति के साथ सरकने को कई भावनाओं से आपने जोड़ कर देखा है. सही मनोदशा की वैचारिकता अधोगामी प्रतीत होने लगे तो व्यक्ति को सचेत हो जाना चाहिये.
हार्दिक शुभकामनाएँ

Comment by shree suneel on June 18, 2015 at 9:35pm
आदरणीया निधि जी, आपकी इस प्रस्तुति ने बहुत प्रभावित किया. सुन्दर.. सार्थक... हार्दिक बधाई आपको.
Comment by shashi bansal goyal on June 18, 2015 at 4:36pm
आद0 निधि जी बहुत ही सुन्दर और सार्थक कविता हुई है । हार्दिक बधाई ।
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 17, 2015 at 6:38pm

भावपूर्ण सुंन्दर प्रस्तुति के लिये बधाई, आ0 निधी जी.

Comment by Nidhi Agrawal on June 17, 2015 at 9:54am

आप सभी मित्रों का बहुत बहुत धन्यवाद 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 17, 2015 at 8:49am

वाह वाह! आपकी इस रचना ने मन मोह लिया..बहुत बेहतरीन कविता! हार्दिक बधाई व् शुभकामनाए आ. निधि जी!

Comment by kanta roy on June 16, 2015 at 11:25pm
बारिश की बूंदों की सरगोशी भी ....कुछ कुछ ढलकी ढलकी सी ..... बडी़ ही रूमानियत से आपने बूंदों की हरकतों को अपने अल्फाजों में पिरोया है ...जिंदगी की मुश्किलों को , संघर्षों तक का फासला , दुख दर्द से भी भिगो गया ... ये बूंद बहुत कुछ स्वंय में पिरो गया । लाजवाब रचना हुई है आपकी आदरणीया निधी अग्रवाल जी
Comment by Samar kabeer on June 16, 2015 at 11:12pm
मोहतरमा निधि अग्रवाल जी,आदाब,बहुत दिनों से आपकी कोई ग़ज़ल नहीं सूनी,ये प्रयास भी जारी रखिये,आपकी यह कविता बहुत पसंद आई,इस सुन्दर प्रस्तुति के लिये बधाई स्वीकार करें ।
Comment by मनोज अहसास on June 16, 2015 at 10:28pm
बहुत खूब
Comment by narendrasinh chauhan on June 16, 2015 at 5:02pm

लाजवाब खूब सुन्दर रचना

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