पद भार : २४ मात्रा
जीवन की सरिता नीर बहाने लगती है
मुझसे जब मेरे तीर छुड़ाने लगती है
बोझ उठा कर इन जखमों का जब थक जाती
सागर की लहर मुझे समझाने लगती है
छिप जाती हूँ मैं जब दुनिया से कोने में
वो मुझ को सहेली बन सताने लगती है
आंसू मेरे जब छिपने लगते आँखों में
वो मुझ पर जीभर प्यार लुटाने लगती है
भागती हूँ जीवन से मैं तोड़कर सब कुछ
अपने अधिकार मुझ पर जताने लगती है
ताबूत कफ़न का रास्ता जब चलती हूँ “निधि”
जिंदादिल जिंदगी मुझे बचाने लगती है
निधि
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सौरभ जी.. बहुत ख़ुशी हुई की आपने हमारी बात को समझा
भावनाओं को कागज़ पर लिख लेना आसान तो है पर ग़ज़ल में ढालना बहुत बहुत मुश्किल
कोशिश करुँगी की मंच को निराश न करूँ .. लेकिन आप गुरुजनों का मार्गदर्शन चाहती रहूंगी
आदरणीया निधिजी, मैं आपकी बातों को समझ सकता हूँ.
नेट ने किसी जानकारी को जितना सुलभ बनाया है, विभ्रम की स्थिति भी उसी अनुपात में बढ़ी है. साहित्य के आंगन में भी ऐसी ही स्थिति है. कारण कि सर्वमान्य तथ्यों के प्रति एकमत तो बनता है, किन्तु कई बार साहित्येतर कारक प्रभावी हो जाते हैं. और ये नये अभ्यासकर्ताओं के लिए परेशानी का कारण हो जाते हैं.
किसी विधा को अपनाना, सर्वोपरि, अपनी भाषा के स्वरूप में अपनाना बुरा नहीं है. लेकिन इस प्रक्रिया में विधाजन्य संज्ञाओं में परिवर्तन तबतक भ्रमकारी बना रहेगा जबतक वो नयी संज्ञाएँ और नये तथ्य सर्वस्वीकार्य न हो जायँ.
मेरा ही नहीं इस मंच का भी मानना है कि ग़ज़ल बस ग़ज़ल होती है. उसके मूलभूत नियम सदा एक रहते हैं. केवल भाषा के स्तर पर उसके प्रस्तुतीकरण के आयाम बदलते प्रतीत होते हैं. उर्दू की ग़ज़ल उर्दू वर्णमाला के अनुसार क़ाफ़िया का निर्वहन करेगी. तो, हिन्दी भाषा में लिखी गयी ग़ज़लों में ऐसे शब्दों की बहुतायत होगी जिनका स्वरूप हिन्दी भाषा में अपनाया जा चुका है तथा जिनकी इस भाषा में स्वीकार्यता हो चुकी है. उससे भी बड़ी बात कि हिन्दी वर्णमाला के अनुसार क़ाफ़ियाबन्दी होगी, नकि उर्दू वर्णमाला के अक्षरों के अनुसार. अन्यथा अभ्यासी रचनाकार ग़ज़ल की विधा को छोड़ भाषा सीखने में समय जाया करेंगे.
यह अवश्य है कि किसी मंच का आग्रह यदि ऐसा है कि वे किन्हीं विशिष्ट नियमों का परिपालन करते हैं, तो सभी सदस्यों को उन नियमों का परिपालन करना ही चाहिये.
सादर
आदरणीय सौरभ जी .. आपका बहुत बहुत धन्यवाद.. जितना अलग अलग मंचों में समझ में आया वोही लिखा ..
किसी ने कहा हिंदी में गीतिका उर्दू में गजलों की तरह होती है ..रदीफ़, काफिया और मतला के नियम होते हैं लेकिन बहर के नियम उतने कड़े नहीं होते जैसे ग़ज़ल में होते हैं.. अगर समान पद भार को रखा जाए तो गीतिका मान्य होती है ..और शब्दों में हिंदी व्याकरण को ज्यादा महत्व दिया जाएगा.. लेकिन अगर आपने कहा है तो अगली बार कोशिश करुँगी ... लिखा बहुत है जो लगता ग़ज़ल जैसा है लेकिन ग़ज़ल नहीं है क्योंकि पदभार पर ध्यान नहीं दिया गया... आता ही नहीं था .. कुछ दिनों पहले ही कुछ अनुभवी मित्रों ने बताया. अब भी सब से सरल २१२ के रुक्न वाली ही ग़ज़ल लिख पायी हूँ
भावपूर्ण गजल रचना के लिए बधाई आद निधि अग्रवाल जी
आदरणीया निधिजी, आपकी किसी पहली ’ग़ज़ल’ से गुजर रहा हूँ. आप का प्रयास संयत है. इस हेतु आप हार्दिक बधाइयाँ ..
किन्तु एक बात विशेष तौर पर कि आप अपनी ग़ज़लों के मिसरों के वज़न के प्रति सचेत रहें. मिसरों के लिए आपने २४ मात्राएँ निर्धारित तो अवश्य की हैं, लेकिन अंतर्गेयता का निर्वहन नहीं हो पाया है.
दूसरे, ग़ज़ल की विधा में ग़ज़ल ही कही जाती है. अतः इसे अन्य नामों से सम्बोधित न किया करें. ग़ज़ल को कोई और नाम किसी मंच पर दिया जाता है तो वह उस मंच के अपनी व्यवस्था है और उस मंच के सदस्य उसकी गरिमा का ध्यान रखें. इस मंच पर ग़ज़ल बस ग़ज़ल है.
ज्ञातव्य है, गीतिका एक समृद्ध छन्द का नाम है.
शुभेच्छाएँ
आदरणीया निधि जी , अच्छी भाव पूर्ण रचना हुई है , हार्दिक बधाइयाँ रचना के लिये ।
आदरणीया निधि जी, सुन्दर प्रयास ,सुन्दर रचना हार्दिक बधाई आपको !
सुन्दर भाव पूर्ण रचना के लिये आपको बधाइयाँ । |
Aadarniya Nidhi Ji,
Sundar rachna ke liye badhai.
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