For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जीवन - एक गीतिका

पद भार : २४ मात्रा 

जीवन की सरिता नीर बहाने लगती है

मुझसे जब मेरे तीर छुड़ाने लगती है

 

बोझ उठा कर इन जखमों का जब थक जाती

सागर की लहर मुझे समझाने लगती है

 

छिप जाती हूँ मैं जब दुनिया से कोने में  

वो मुझ को सहेली बन सताने लगती है

 

आंसू मेरे जब छिपने लगते आँखों में

वो मुझ पर जीभर प्यार लुटाने लगती है

 

भागती हूँ जीवन से मैं तोड़कर सब कुछ

अपने अधिकार मुझ पर जताने लगती है

 

ताबूत कफ़न का रास्ता जब चलती हूँ “निधि”  

जिंदादिल जिंदगी मुझे बचाने लगती है 

निधि 

मौलिक और अप्रकाशित 

Views: 653

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nidhi Agrawal on March 19, 2015 at 10:03am

आदरणीय सौरभ जी.. बहुत ख़ुशी हुई की आपने हमारी बात को समझा 

भावनाओं को कागज़ पर लिख लेना आसान तो है पर ग़ज़ल में ढालना बहुत बहुत मुश्किल 

कोशिश करुँगी की मंच को निराश न करूँ .. लेकिन आप गुरुजनों का मार्गदर्शन चाहती रहूंगी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 18, 2015 at 6:50pm

आदरणीया निधिजी, मैं आपकी बातों को समझ सकता हूँ.
नेट ने किसी जानकारी को जितना सुलभ बनाया है, विभ्रम की स्थिति भी उसी अनुपात में बढ़ी है. साहित्य के आंगन में भी ऐसी ही स्थिति है. कारण कि सर्वमान्य तथ्यों के प्रति एकमत तो बनता है, किन्तु कई बार साहित्येतर कारक प्रभावी हो जाते हैं. और ये नये अभ्यासकर्ताओं के लिए परेशानी का कारण हो जाते हैं.

किसी विधा को अपनाना, सर्वोपरि, अपनी भाषा के स्वरूप में अपनाना बुरा नहीं है. लेकिन इस प्रक्रिया में विधाजन्य संज्ञाओं में परिवर्तन तबतक भ्रमकारी बना रहेगा जबतक वो नयी संज्ञाएँ और नये तथ्य सर्वस्वीकार्य न हो जायँ.

मेरा ही नहीं इस मंच का भी मानना है कि ग़ज़ल बस ग़ज़ल होती है. उसके मूलभूत नियम सदा एक रहते हैं. केवल भाषा के स्तर पर उसके प्रस्तुतीकरण के आयाम बदलते प्रतीत होते हैं. उर्दू की ग़ज़ल उर्दू वर्णमाला के अनुसार क़ाफ़िया का निर्वहन करेगी. तो, हिन्दी भाषा में लिखी गयी ग़ज़लों में ऐसे शब्दों की बहुतायत होगी जिनका स्वरूप हिन्दी भाषा में अपनाया जा चुका है तथा जिनकी इस भाषा में स्वीकार्यता हो चुकी है. उससे भी बड़ी बात कि हिन्दी वर्णमाला के अनुसार क़ाफ़ियाबन्दी होगी, नकि उर्दू वर्णमाला के अक्षरों के अनुसार. अन्यथा अभ्यासी रचनाकार ग़ज़ल की विधा को छोड़ भाषा सीखने में समय जाया करेंगे.

यह अवश्य है कि किसी मंच का आग्रह यदि ऐसा है कि वे किन्हीं विशिष्ट नियमों का परिपालन करते हैं, तो सभी सदस्यों को उन नियमों का परिपालन करना ही चाहिये.
सादर

Comment by Nidhi Agrawal on March 18, 2015 at 5:03pm

आदरणीय सौरभ जी .. आपका बहुत बहुत धन्यवाद.. जितना अलग अलग मंचों में समझ में आया वोही लिखा ..

किसी ने कहा हिंदी में गीतिका उर्दू में गजलों की तरह होती है ..रदीफ़, काफिया और मतला के नियम होते हैं लेकिन बहर के नियम उतने कड़े नहीं होते जैसे ग़ज़ल में होते हैं.. अगर समान पद भार को रखा जाए तो गीतिका मान्य होती है ..और शब्दों में हिंदी व्याकरण को ज्यादा महत्व दिया जाएगा.. लेकिन अगर आपने कहा है तो अगली बार कोशिश करुँगी ... लिखा बहुत है जो लगता ग़ज़ल जैसा है लेकिन ग़ज़ल नहीं है क्योंकि पदभार पर ध्यान नहीं दिया गया... आता ही नहीं था .. कुछ दिनों पहले ही कुछ अनुभवी मित्रों ने बताया. अब भी सब से सरल २१२ के रुक्न वाली ही ग़ज़ल लिख पायी हूँ 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 18, 2015 at 12:03pm

भावपूर्ण  गजल  रचना के लिए  बधाई आद  निधि  अग्रवाल  जी  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 18, 2015 at 4:56am

आदरणीया निधिजी, आपकी किसी पहली ’ग़ज़ल’ से गुजर रहा हूँ. आप का प्रयास संयत है. इस हेतु आप हार्दिक बधाइयाँ ..

किन्तु एक बात विशेष तौर पर कि आप अपनी ग़ज़लों के मिसरों के वज़न के प्रति सचेत रहें. मिसरों के लिए आपने २४ मात्राएँ निर्धारित तो अवश्य की हैं, लेकिन अंतर्गेयता का निर्वहन नहीं हो पाया है.
दूसरे, ग़ज़ल की विधा में ग़ज़ल ही कही जाती है. अतः इसे अन्य नामों से सम्बोधित न किया करें. ग़ज़ल को कोई और नाम किसी मंच पर दिया जाता है तो वह उस मंच के अपनी व्यवस्था है और उस मंच के सदस्य उसकी गरिमा का ध्यान रखें. इस मंच पर ग़ज़ल बस ग़ज़ल है.
ज्ञातव्य है, गीतिका एक समृद्ध छन्द का नाम है.
शुभेच्छाएँ

Comment by Naveen Mani Tripathi on March 17, 2015 at 11:49pm
बहुत खूब बधाई आपको।।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 17, 2015 at 9:38pm

आदरणीया निधि जी , अच्छी भाव पूर्ण रचना हुई है , हार्दिक बधाइयाँ रचना के लिये ।

Comment by Hari Prakash Dubey on March 17, 2015 at 7:41pm

आदरणीया निधि जी, सुन्दर प्रयास ,सुन्दर रचना  हार्दिक बधाई आपको !

Comment by Shyam Narain Verma on March 17, 2015 at 3:48pm
सुन्दर भाव पूर्ण रचना के लिये आपको बधाइयाँ ।
Comment by Shyam Mathpal on March 17, 2015 at 12:28pm

Aadarniya Nidhi Ji,

Sundar rachna ke liye badhai.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
7 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन भाईजी,  प्रस्तुति के लिए हार्दि बधाई । लेकिन मात्रा और शिल्पगत त्रुटियाँ प्रवाह…"
15 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी, समय देने के बाद भी एक त्रुटि हो ही गई।  सच तो ये है कि मेरी नजर इस पर पड़ी…"
15 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, इस प्रस्तुति को समय देने और प्रशंसा के लिए हार्दिक dhanyavaad| "
16 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपने इस प्रस्तुति को वास्तव में आवश्यक समय दिया है. हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार…"
18 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी आपकी प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद. वैसे आपका गीत भावों से समृद्ध है.…"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त चित्र को साकार करते सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"सार छंद +++++++++ धोखेबाज पड़ोसी अपना, राम राम तो कहता।           …"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"भारती का लाड़ला है वो भारत रखवाला है ! उत्तुंग हिमालय सा ऊँचा,  उड़ता ध्वज तिरंगा  वीर…"
yesterday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"शुक्रिया आदरणीय चेतन जी इस हौसला अफ़ज़ाई के लिए तीसरे का सानी स्पष्ट करने की कोशिश जारी है ताज में…"
Friday
Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"संवेदनाहीन और क्रूरता का बखान भी कविता हो सकती है, पहली बार जाना !  औचित्य काव्य  / कविता…"
Friday
Chetan Prakash commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"अच्छी ग़ज़ल हुई, भाई  आज़ी तमाम! लेकिन तीसरे शे'र के सानी का भाव  स्पष्ट  नहीं…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service