तुझसे मिलन के इंतज़ार में
बसाया था बलम
तेरी छवि को यादों में
तेरी प्रीत को ख्वाबो में
करवटों को बाँहों में
और
सिलवटों को रातों में
तुझको पाने की प्यास में
सीखा था सनम
गीतों को गाना
नृत्य को जीना
शराब को पीना
और
ज़ख्मों को सीना
तुझसे मिलन की आस पिया
और सजाया था
कजरा आँखों में
गजरा बालों में
नखरा गालों पे
और
मदिरा होठों पे
अब नहीं रुका जाता प्रिय
आ जाओ और बहका दो
बातों को बातों से
होठों को होठों से
बाहों को बाहों से
ओर
साँसों को साँसों से
निधि
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
आप सभी मित्रों का बहुत बहुत आभार
रचना साहित्य की नज़र से स्तरीय नहीं होते हुवे भी आप सभी ने रचना को सम्मान दिया .. आप की बहुत शुक्रगुजार हूँ
यों ही चलते फिरते लिख दी थी सही में
भावपूर्ण रचना के लिए बधाई आद निधि अग्रवाल जी
आदरणीया निधि जी, सुन्दर प्रस्तुति , हार्दिक बधाई आपको ! सादर
बहुत सुन्दर , सुन्दर भाव , सुन्दर कविता के लिये बधाई , आदरणीया निधि जी ॥
सुंदर रचना के लिए बहुत बधाई सादर |
अब नहीं रुका जाता प्रिय
आ जाओ और बहका दो
बातों को बातों से
होठों को होठों से
बाहों को बाहों से
ओर
साँसों को साँसों से -------------------इस संवेदना को प्रणाम . सुन्दर रचना आ० निधि जी
आदरणीय निधि जी ,
मिलन व इंतज़ार को सही शब्दों मे पिरोया है.
सुंदर रचना के लिए बधाई .
सीधी-साधी भाषा में अपने दिल की अभिव्यक्ति ,शायद आज का जनसामान्य पाठक ऐसी ही रचनाओं की प्रतीक्षा करता है |शिल्प-बिम्ब और छंद रचना को विशेष प्रभाव अवश्य देते हैं परंतु लोकप्रियता हमेशा आम लोगों की भाषा में लिखे साहित्य को मिलती है |आपकी रचना में अभी वैसे ही तत्व दिखते हैं |इसलिए बधाई
बहुत खूब आदरणीया निधि जी विरह वेदना को खूब प्रस्तुत किया है आपने सादर बधाई इस रचना के लिये
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