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खाली खाली सी ज़िन्दगी (मुक्त कविता)

जिंदगी कुछ खाली खाली सी लगती है 
दुनिया अचानक सुनसान सी लगती है 
खुशियों में आज इक तड़प सी क्यों है 
दिल दर्द के बिना परेशान सा क्यों है 
तुझ से कुछ भी तो नहीं माँगा ऐ खुदा 
फिर आसपास हंसी की फुहारे क्यों है 
चाहत नहीं हँसते नजारों की अल्लाह 
फिर सूनी सी बगिया में बहारें क्यों है 
नशा जो मांगती हूँ ग़म-ए-मुहब्बत का 
ऐ मेरे खुदा, फिर आज आंख में आंसू 
और इन जख्मों में मवाद कम क्यों है 
जिन्हें पाने की आस में तड़पे थे रात दिन 
वो दूरियां बना प्यास जगाये थे पल छिन 
जिनकी याद मिटाने को हम भटके दर बदर 
वो सामने ही आज क्यों खड़े हैं इस कदर 
जिनसे लड़ने को तेज़ाब थी दिल की लहर 
आज फिर जुबां पे ये खामोशी क्यों है 
तुमसे कुछ भी तो नहीं माँगा था ऐ खुदा 
फिर सच.. आज हंसी की फुहारे क्यों हैं !

निधि

मौलिक और अप्रकाशित 

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Comment by narendrasinh chauhan on August 28, 2015 at 10:24am

सुंदर रचना के लिए बधाई


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Comment by गिरिराज भंडारी on August 27, 2015 at 10:02am

आदरणीया निधि जी , इस प्रस्तुति के लिये आपको हार्दिक बधाई ।

Comment by Harash Mahajan on August 27, 2015 at 9:08am
"तुमसे कुछ भी तो नहीं माँगा था ऐ खुदा,
फिर सच....आज हंसी की फुहारें क्यों हैं" व्यथित मन के उद्गारों को बड़े सलीके से पेश किया है आदरणीय निधि जी । बधाई । सादर ।
Comment by Ravi Shukla on August 26, 2015 at 2:14pm

आदरणीया निधि जी प्रस्‍तुति के लिये हार्दिक आभार । यदि कथ्‍य कुछ और स्‍पष्‍ट हो सकता तो भाव और भी सुन्‍दर हो सकते है ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 25, 2015 at 11:08am

आदरणीया निधि जी,

 इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई. सादर 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 25, 2015 at 10:18am

जिदगी के कशमकश को रूपायित करती हैं यह कविता .

Comment by kanta roy on August 25, 2015 at 8:56am

सुंदर रचना हुई है  आदरणीया निधि जी , बधाई स्वीकार करें ।

Comment by pratibha pande on August 25, 2015 at 8:28am
सुंदर रचना के लिए बधाई आपको आ० निधि जी

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