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मेरी पहली कोशिश

जिंदगी की कहानी सुनाता रहा

दर्द दिल के सभी मै छिपाता रहा

प्यार था या नहीं ये पता ही नहीं

बात क्या थी जिगर में दबाता रहा

जज़्ब होते रहे अश्क भीगे अधर

मुसकुरा कर  निगाहें चुराता रहा

तोड़कर वो चली पारसा दिल मेरा

आइना कांच में मैं बनाता रहा

मुफलिसी में नहीं जो हुये हमसफर

हर कमाई उन्ही पर लुटाता रहा

जीतकर जो मुझे हारता ही रहा   

हारकर भी उसे मैं जिताता रहा

तू बताना “निधी”मैं गलत तो नहीं

मर्म मेरा मुझे क्यों सताता रहा 

निधि  

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Comment

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Comment by Nidhi Agrawal on March 18, 2015 at 5:26pm

@गिरिराज भंडारी जी.. ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति का बहुत बहुत आभार .. अगली बार से ये गलती नहीं होगी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 15, 2015 at 9:25am

आदरणीया निधि जी , अच्छी गज़ल कही है , हार्दिक बधाइयाँ । बह्र ऊपर लिख देने से अन्य सीखने वालों को सहायता हो जाती है , संभव हो तो लिख दिया करें ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 14, 2015 at 9:11pm

पहली लेकिन शानदार कोशिश........

बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई 

Comment by gumnaam pithoragarhi on March 14, 2015 at 8:51pm
मुफलिसी में नहीं जो हुये हमसफर

हर कमाई उन्ही पर लुटाता रहा

वाह बहुत खूब ग़ज़ल कही है बढ़िया
Comment by Alok Mittal on March 14, 2015 at 4:04pm

वाह्ह्ह वाह्ह्ह बहुत सुंदर ग़ज़ल आपकी ...

तोड़कर वो चली पारसा दिल मेरा

आइना कांच में मैं बनाता रहा

मुफलिसी में नहीं जो हुये हमसफर

हर कमाई उन्ही पर लुटाता रहा

जीतकर जो मुझे हारता ही रहा   

हारकर भी उसे मैं जिताता रहा....वाह्ह्ह शानदार

Comment by umesh katara on March 13, 2015 at 6:58pm

Nidhi Plus जी आपकी मेहनत और  जज्बे का ही प्रतिफल है ये रचना 
बहुत सुन्दर गजल हुयी हुयी है 
हर शेर लाजबाब है 

वाहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहह
एक बार और वाहहहह

Comment by Nidhi Agrawal on March 13, 2015 at 4:31pm

शुक्रिया लक्ष्मण धामी जी आपकी प्रेरणा से सही होगा 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 13, 2015 at 11:22am

पहली कोशिश और वह भी इतनी उम्दा....अंजाम और भी बेहतरीन होते जायेंगे ...... ढेरों मुबारकबाद

Comment by Nidhi Agrawal on March 13, 2015 at 9:35am

आप सभी महानुभावों का बहुत बहुत आभार .. मैंने इस मंच पर अपनी अपनी रचना पहली बार पोस्ट की थी. 

फेसबुक के कुछ ग्रुप्स में रचनाएँ प्रस्तुत करती रही हूँ और जो कुछ सीखा है वहीँ सीखा. कोशिश जारी है 

इस मंच पर मुझे "ग़ज़ल की कक्षा" खींच लायी ताकि बहर के बारे में और अधिक सीख सकूँ. 

आप सभी मित्रों की समीक्षा प्रेरणा देती रहेगी इसी आशा में हूँ.. धन्यवाद् 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 13, 2015 at 7:54am

//प्यार था या नहीं ये पता ही नहीं

बात क्या थी जिगर में दबाता रहा

मुफलिसी में न बन जो सके हमसफर

हर कमाई उन्ही पर लुटाता रहा//

आदरणीया निधि जी ये दो अश'आर बेहतरीन हैं दाद हाज़िर है कुबूल फरमायें

 

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