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दर ब दर भटके बिचारी ज़िन्दगी
मौत से भी देखो हारी ज़िन्दगी
आसुओं में रही यूँ वो तर ब तर
इसलिए तो लगती खरी ज़िन्दगी
मांगती ही रहती है साँसे सदा
हर बशर की है भिखारी ज़िन्दगी
ख़त्म गर्भों में हुई जो धडकनें
अब कहाँ है वो कुंवारी ज़िन्दगी
बोझ ढोता ही रहा परिवार का
एक बच्चे ने भली सँवारी ज़िन्दगी
गुमनाम पिथौरागढ़ी
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आ0 भाई गुमनाम जी सक्रिय सदस्य मनोनीत किए जाने पर कोटि कोटि बधाई . आपकी सक्रियता इसी प्रकार बनी रहे यही कामना है
बोझ ढोता ही रहा परिवार का
एक बच्चे ने भली सँवारी ज़िन्दगी ,,,,,,वाह सर बेहद उम्दा गजल कही है आपने ,आपको हार्दिक बधाई |
जैसा की विशेषज्ञों ने ईंगित किया ,कुछ कमियों के साथ एक भावपूर्ण गज़ल
आदरणीय गुमनाम जी बेहतरीन गज़ल है बहुत बहुत बधाई आपको
आदरणीय गुमनाम भाई , गज़ल अच्छी हुई है , बधाइयाँ । आ. मिथिलेश भाई की सलाहों पर गौर कीजियेगा ।
दोस्तों धन्यवाद ............. अरे मैं इतनी ज्यादा गलती कर गया माफ़ी चाहता हूँ .............. आगे से पूरा ध्यान दूंगा .........
आदरणीय गुमनाम जी, खूबसूरत ग़ज़ल , बधाई !
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल! आपको बहुत-बहुत बधाई! |
Aadarniya Gumnami Ji,
Jindagi par sundar rachna ke liye badhai.
दर ब दर भटके बिचारी ज़िन्दगी
मौत से भी देखो हारी ज़िन्दगी ............ सुन्दर मतला
आसुओं में रही यूँ वो तर ब तर .......... आसुओं में यूँ रही वो तर ब तर
इसलिए तो लगती खरी ज़िन्दगी ......... इसलिए तो लगती खारी ज़िन्दगी
मांगती ही रहती है साँसे सदा ......... मांगती रहती है साँसे ही सदा
हर बशर की है भिखारी ज़िन्दगी ..... हर बशर की है भिखारी ज़िन्दगी
ख़त्म गर्भों में हुई जो धडकनें
अब कहाँ है वो कुंवारी ज़िन्दगी ....... वाह वाह
बोझ ढोता ही रहा परिवार का ..........बोझ ढोता ही रहा परिवार का
एक बच्चे ने भली सँवारी ज़िन्दगी ......... एक बच्चे ने सँवारी ज़िन्दगी
बधाई इस ग़ज़ल पर ... आदरणीय गुमनाम सर बिना तक्तीअ के जल्दबाजी में पोस्ट कर दी आपने ग़ज़ल
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