2122 1212 112/22
जब ज़माना मेरा मुशीर हुआ
लोग हाकिम तो मैं असीर हुआ
तुझपे पत्थर अगर बरसने लगे
ये समझना तू बेनज़ीर हुआ
जा ब जा बेख़याल फिरता हूँ
ये खबर है कि मैं फकीर हुआ
बेखबर दिल निगाहे क़ातिल तेज़
सो निशाने पर अब के तीर हुआ
तंग हाली ज़बाँ से झाँके है
कौन कहता है वो अमीर हुआ
(मुशीर-सलाहकार, असीर-कैदी, बेनज़ीर-लाजवाब)
-मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय डॉ गोपाल नारायण सर आप जैसे रचनाकार द्वारा प्रशस्ति पाना सदैव हर्ष का कारण होता है आपका तहेदिल से शुक्रिया
आदरणीय श्याम मठपाल सर रचना को समय देने एवं सराहने के लिये बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय मिथिलेश भाई आपका हार्दिक आभार
आदरणीय डॉ विजय शंकर सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया जो आपने मेरी रचना को सराहा
आदरणीय शिज्जू जी ..आज बहुत दिनों बाद अपने इस प्रिय मंच से जुड़ने का मौका मिला ..आते ही आपकी रचना ..और हमेशा की तरह इस बार भी पढने से ज्यादा बहुत कुछ सिखाती हर शेर एक से बढ़कर एक इस शानदार रचना के लिए तहे दिल बधाई सादर
ला जवाब रचना .. एक एक शेर कीमती आदरणीय शिज्जू साहब ! दिली दाद कुबूल करें
आदरणीय शिज्जु भाई , पाँच के पाँच अशआर बेहद खूबसूरत हुये हैं ॥ पूरी गज़ल के लिये मुबारकबाद कुबूल करें ॥ बस वाह वाह ॥
तुझपे पत्थर अगर बरसने लगे
ये समझना तू बेनज़ीर हुआ-----लाजबाब
जा ब जा बेख़याल फिरता हूँ
ये खबर है कि मैं फकीर हुआ====उम्दा
बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई शिज्जू भैय्या दिली बधाई स्वीकारें
अच्छी ग़ज़ल की हार्दिक बधाई । |
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