For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -- हर इक रिश्ता यहाँ झूठा बहुत है। ( बराए इस्लाह )

1222-1222-122

सफ़र सच का अगर लम्बा बहुत है
मुझे भी हौसला थोड़ा बहुत है

सभी के सामने जो मुस्कुराता
वही छुप छुप के क्यूँ रोता बहुत है

पड़ी है ईद दीवाली इकठ्ठा
नगर में आज़ सन्नाटा बहुत है

गया परदेस बूढ़ी माँ का बेटा
बहाना जो भी हो थोथा बहुत है

कमा कर भेजता वो माँ को पैसे
मगर इक माँ को क्या इतना बहुत है

भँवर में जो फँसा हो उससे पूछो
सहारे के लिए तिनका बहुत है

चले ही जाना सबको इस जहाँ से
हर इक रिश्ता यहाँ झूठा बहुत है

बिसाते वक़्त पर सपनों की बाज़ी
हमारी हार का खतरा बहुत है

ग़ज़ल अब भी मुकम्मल कह न पाया
अगरचे ज़ेहन ने सोचा बहुत है

--------------------------------
(मौलिक व अप्रकाशित) © दिनेश कुमार
------------------------------

Views: 581

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nirmal Nadeem on March 21, 2015 at 2:59pm
बहुत उम्दा वाह वाह वाह
बहुत खूब
मुबारक हो
Comment by Dr. Vijai Shanker on March 21, 2015 at 9:42am
सुन्दर , बधाई , सादर।
Comment by umesh katara on March 21, 2015 at 9:03am

वाहहहहह जनाब वाहहहहहहह


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 20, 2015 at 9:18pm

आदरणीय दिनेश भाई जी बहुत बेहतरीन और उम्दा ग़ज़ल हुई है. शेर दर शेर दाद हाज़िर है 

ये अशआर बहुत भाए-

गया परदेस बूढ़ी माँ का बेटा
बहाना जो भी हो थोथा बहुत है

भँवर में जो फँसा हो उससे पूछो
सहारे के लिए तिनका बहुत है

ग़ज़ल अब भी मुकम्मल कह न पाया
अगरचे ज़ेहन ने सोचा बहुत है

Comment by maharshi tripathi on March 20, 2015 at 6:22pm

भँवर में जो फँसा हो उससे पूछो
सहारे के लिए तिनका बहुत है,,,,,,,वाह !! सुन्दर रचना पर ,,बधाई आपको आ. दिनेश कुमार जी |

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 20, 2015 at 5:31pm

आ० दिनेश जी

बहुत बढिया

.ग़ज़ल अब भी मुकम्मल कह न पाया
अगरचे ज़ेहन ने सोचा बहुत है

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service