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हम तन्हा कहाँ होते हैं --डा० विजय शंकर

हम जब तन्हा होते हैं ?
तुम्हारे साथ होते हैं
तुमसे बातें करते हैं
तुमको देखा करते हैं
तुम्हारी मुस्कुराहटों में
हँसते हैं , जी लेते हैं
तुमसे सवाल करते हैं
तुम्हारे जवाब देते हैं
तुम्हारे हरेक सवाल के
सौ सौ जवाब देते हैं
कितनी बार पूछती हो
जब आप तन्हा होते हैं
तब आप क्या करते हैं ?
हम तन्हा कहाँ होते हैं
हम जहां भी होते हैं
तुम्हारे साथ होते हैं
हर बात मान लेती हो
इस पर यकीं नहीं करतीं
जब हम प्यार में होते हैं
हम तन्हा नहीं होते हैं
हम तन्हा नहीं होते हैं ||

मौलिक एवं अप्रकाशित.
डा० विजय शंकर

Views: 440

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Comment by Dr. Vijai Shanker on March 25, 2015 at 3:49am
आदरणीय डॉo आशुतोष मिश्रा जी , आपने रचना को स्वीकृति प्रदान की , आपका आभार , रचना की प्रशस्ति हेतु आपको धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on March 24, 2015 at 1:36pm

आदरणीय विजय सर ..अंतिम पंक्तियाँ   बिलकुल सत्य हैं ..पूरी रचना के हर पंक्ति मैं सहमत हूँ . इस शानदार रचना के लिए तहे दिल बधाई सादर                             

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 23, 2015 at 9:17am
आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी , रचना आपको सुन्दर लगी , आभार एवं बहुत बहुत धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on March 23, 2015 at 9:12am
आदरणीय गुमनाम पिथौरागढ़ी जी , रचना आपको अच्छी लगी , आभार एवं धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on March 23, 2015 at 9:10am
आदरणीय इंजी o गणेश जी बागी जी , आपकी सकारात्मक प्रतिक्रिया एवं अपेक्षाओं के लिए बहुत बहुत धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on March 23, 2015 at 9:07am
आदरणीय सोमेश कुमार जी , प्रशस्ति हेतु आभार, धन्यवाद , सादर।
Comment by Hari Prakash Dubey on March 23, 2015 at 12:25am

आदरणीय डॉक्टर विजय शंकर  सर, सुन्दर प्रस्तुति है !

हम तन्हा कहाँ होते हैं
हम जहां भी होते हैं
तुम्हारे साथ होते हैं....क्या बात है सर , आपने एक भाव में बहकर लिख दिया है ! सादर 

Comment by gumnaam pithoragarhi on March 22, 2015 at 9:28pm
रचना अच्छी लगी ,,,,,,,, बधाई सर जी ..

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 22, 2015 at 8:21pm

आदरणीय डॉ साहब, आपकी कई अच्छी रचनायें मैंने पढ़ी है और उनको पढ़ने के बाद यह रचना अपेक्षाकृत हल्की लगी, ऐसा लग रहा है जैसे कहने के लिए बहुत ही कम कथ्य है जिसे कृत्रिम रूप से विस्तारित किया गया है. सादर. 

Comment by somesh kumar on March 22, 2015 at 7:38pm

सुंदर अभिव्यक्ति ,

खामोश सा अफसाना पानी पे लिखा होता

ना तुमने कहा होता ना हमने सुना होता

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