चलते चलते ……
1.
एक कतरा
देर तक
बहते बहते
कपोल पर ही सो गया
शायद
अभी इंतज़ार बाकी था
2.
ये अलस्सुब्ह
किसकी नमी को छूकर
बादे सबा आई है
खुली पलक का
कोई ख़्वाब
सिसकता रह गया शायद
3.
तेरे हर वादे पे
यकीं करता रहा
पर तुझे यकीं न आया
मैं हर लम्हा तुझपे
सौ सौ बार मरता रहा
मेरी मौत को भी तूने
मेरी नींद समझा
नज़र भर के भी तूने
न देखा मुझको
गो चहरे से कफ़न
बार बार हटता रहा
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय Mohan Sethi 'इंतज़ार' जी रचना पर आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय krishna mishra 'jaan'gorakhpuri जी रचना पर आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय Dr. Vijai Shanker जी रचना पर आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
सुंदर रचना के लिए बधाई .
बहुत ही सुन्दर
अति सुन्दर अभिव्यक्ति। बधाई।
इस सुंदर प्रस्तुति के लिए तहे दिल बधाई सादर |
बहुत खूब कहा ...बधाई .....सादर
खुली पलक का
कोई ख़्वाब
सिसकता रह गया शायद!
बहुत पसंद आई आपकी कविताए!हार्दिक बधाईयां!
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